________________
हृदयरोग : कारण और निवारण १३५ चिकित्सा होती है । हृदय का रोग, किडनी का रोग, लीवर का रोग- इस प्रकार अवयव के साथ रोग जुड़ा हुआ है।
हृदय परिर्वतन का अर्थ
आज हृदय रोग का संदर्भ हमारे सामने है । हृदय जीवन का महत्वपूर्ण अंग है । अनेकान्त दृष्टि से विचार करें तो केवल हृदय को ही जीवन का महत्वपूर्ण अंग नहीं माना जा सकता । अनेक अवयव ऐसे हैं, जो जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं । हृदय अच्छा काम कर रहा है, किन्तु किडनी फेल हो गई तो क्या होगा? अनेक समस्याएं पैदा हो जाएंगी । इसी प्रकार यह भी कहा जाता है— सब अवयव अच्छा काम कर रहे हैं, हार्ट फेल हो गया तो क्या होगा ? जीवन खतरे में पड़ जाएगा । जिसका जीवन के साथ इतना गहरा सम्बन्ध है, उसके स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना अपेक्षित है । वस्तुतः श्वास और हृदय-ये जीवन के पर्यायवाची जैसे बने हुए हैं । हृदय धड़कता है, आदमी काम करता है । हृदय बन्द हुआ, आदमी निष्क्रिय हो जाएगा। आयुर्वेद में हृदय दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है । एक हृदय वह है, जो धड़कता है, रक्त का शोधन करता है । एक हृदय वह है, जो मस्तिष्क में है । बहुत प्रचलित शब्द है हृदय-परिवर्तन । हृदय-परिवर्तन का एक अर्थ है-जो हृदय विकृत हो गया, उसके स्थान पर दूसरा कृत्रिम हृदय लगा देना । वस्तुतः यह हृदय-परिवर्तन नहीं, हृदय का प्रत्यारोपण है । हृदय-परिवर्तन का एक अर्थ है, भाव को बदल देना, चिन्तन और मानसिकता को बदल देना । वह हृदय है हमारा मस्तिष्क । जो शारीरिक क्रिया कर रहा है, वह हृदय एक मांसपिण्ड है | आज हम उस हृदय पर विचार कर रहे हैं, जो हमारे जीवन की गत्यात्मकता के लिए उत्तरदायी है । यह माना जाता है कि यदि ठीक व्यवस्था चले तो हृदय आदि अवयव सैकड़ों वर्षों तक अपना काम कर सकते हैं । उनकी इतनी क्षमता है किन्तु वह क्षमता काम में नहीं आती, उसका उपयोग भी नहीं किया जाता ।
अध्यवसान
भगवान महावीर ने अकालमृत्यु के अनेक कारण बतलाए । अकालमृत्यु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org