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१२२ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
समय का नियोजन न कर पाएं तो अनुप्रेक्षा को दोष न दें । एक सामायिक का काल सबसे अच्छा बताया गया है । अड़चास मिनट का समय हमारी भावधारा को एक रूप में बनाए रखने का समय है । हम इतने समय का नियोजन प्रतिदिन करें और किसी समस्या को लेकर बैठ जाएं । कम से कम तीन सप्ताह और ज्यादा से ज्यादा तीन मास का समय लगेगा । यह अनुभव हो जाएगा कि आपके भीतर निश्चित परिर्वतन हो रहा है । इसमें कोई संदेह नहीं है ।
इस बात का भी ध्यान रखें- एक साथ अनेक समस्याओं को न लें । एक समस्या को लें । शरीर की एक समस्या, मन की एक समस्या अथवा भावात्मकता की एक समस्या । समस्या का चुनाव कर प्रयोग करें, आत्मविश्वास के साथ करें तो अनुभव होगा- इससे बढ़िया कोई दवा और डाक्टर नहीं है।
परिर्वतन की कला
_अनप्रेक्षा का प्रयोग सत्य को हृदयंगम करने का प्रयोग है । स्वाध्याय के पांच प्रकारों में एक है अनुप्रेक्षा । इसका तात्पर्य है— पहले शब्द को पढ़ो, फिर उसका ठीक उच्चारण करो, उसके अर्थ का बोध करो । जब अर्थ का बोध होता है, तब मस्तिष्क बिलकुल साफ हो जाता है । अर्थ बोध के बिना कोरा पाठ बहुत काम का नहीं होता । जो अर्थ जाना है, उसे आत्मसात् करने के लिए अनुप्रेक्षा करो, अनुचिन्तन करो | धर्म उत्कृष्ट मंगल है- केवल उच्चारण मात्र से यह हृदयंगम नहीं होगा । वह मंगल कैसे है.--- इसकी अनुचिन्तना
और अनुप्रेक्षा करो । इस अर्थ को आत्मसात् कर लेंगे तभी धर्म हमारे लिए मंगल बन पाएगा | जिस व्यक्ति ने धर्म के अर्थ को हृदयंगम कर लिया, धर्म की भावना को मस्तिष्क में स्थापित कर लिया, उसके लिए धर्म सदा मंगलकारी होगा।
यह अनुप्रेक्षा का संक्षिप्त स्वरूप है । यदि आप आध्यात्मिक विकास चाहते हैं तो अनुप्रेक्षा का प्रयोग करना होगा । मोह का शमन करना चाहते हैं तो अनुप्रेक्षा का प्रयोग करना होगा । बदलना चाहते हैं तो अनुप्रेक्षा का प्रयोग करना होगा । व्यवहार को शुद्ध बनाना चाहते हैं तो अनुप्रेक्षा का प्रयोग करना होगा । स्वास्थ्य को अच्छा बनाना चाहते हैं तो अन्प्रेक्षा का प्रयोग करना होगा अनुप्रेक्षा के द्वारा वह घटित होगा, जो आप चाहते हैं । शरीर
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