Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 144
________________ १३० महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र उसके हाथों से मारे जाते थे । एक निमित्त मिला, हिंसा का भाव बदला और वह महावीर के पास जाकर दीक्षित हो गया । प्रश्न हो सकता है— महावीर ने ऐसे व्यक्ति को मुनि कैसे बनाया ? वह कितना क्रूर हत्यारा था । जो छह महीने से निरंतर सात सात व्यक्तियों की हत्या कर रहा था, महावीर ने उसे दीक्षित कैसे किया ? महावीर व्यक्ति के रंग को, लेश्या, भावधारा और आभामण्डल को साक्षात् देख लेते थे इसलिए उन्हें दीक्षित करने में कोई कठिनाई नहीं हुई । योग के क्षेत्र में यह माना गया कि आचार्य किसी व्यक्ति को शिष्य बनाते हैं तो औपचारिक रूप से यह जानकारी करते हैं-इस व्यक्ति का चलन कैसा है ? व्यवहार कैसा है ? प्रकृति कैसी है ? यह व्यावहारिक कसौटी है | इस कसौटी के पश्चात् आचार्य यह देखते हैं कि व्यक्ति का आभामण्डल कैसा है ? आभामण्डल को देखकर योग्यता और अयोग्यता का निर्णय करते हैं । जिसका आभामंडल अच्छा प्रतीत होता है, उसे दीक्षित करते हैं । जिसका आभामण्डल अच्छा नहीं लगता, उसे अस्वीकार कर देते हैं । दीक्षा की एक महत्वपूर्ण कसौटी रही है आभामण्डल | कैसा है भाव ? महत्वपूर्ण प्रश्न है-व्यक्ति का भाव कैसा है ? भावधारा के आधार पर लेश्या और आभामंडल का निश्चय किया जा सकता है । एक आदमी बहुत ईर्ष्यालु है तो मानना चाहिए कि नीललेश्या के परमाणु उसमें बहुत संचित हैं । वे परमाणु उसे ईर्ष्यालु बना रहे हैं । एक मनुष्य बहुत कपटी है, निरन्तर माया करता रहता है तो मानना चाहिए कि उसमें कापोत लेश्या के परमाणु बहुत संचित हो गए हैं । एक व्यक्ति बहुत अच्छा व्यवहार कर रहा है, मृदु और विनम्र व्यवहार कर रहा है तो मानना चाहिए कि तेजोलेश्या के परमाणु सक्रिय हैं। एक व्यक्ति बहुत उपशांत है, उसके क्रोध, मान, माया और लोभ प्रतनु बने हुए हैं तो मानना चाहिए- उसमें पद्मलेश्या के परमाणु क्रियाशील हैं । चमकते हुए पीले रंग के परमाणु प्रतनु कषाय का हेतु बनते हैं । एक व्यक्ति इन सबसे ऊपर उठ हुआ है, वृत्तियों के वर्तुल से मुक्त बना हुआ है, वीतराग तुल्य जीवन जी रहा है तो मानना चाहिए कि शुक्ललेश्या के परमाणु सक्रिय हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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