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प्रेक्षाध्यान और स्वास्थ्य १०३
बड़े कुशल होते हैं । पैरों को दबाते हैं, पीड़ा मिट जाती है । कुछ लोग हाथ फेरते हैं, हस्त-स्पर्श करते हैं और दर्द विलीन हो जाता है । एक व्यक्ति ने कहा- भाई ! थोड़ा सा हाथ फेरो । वह स्पर्श चिकित्सा में दक्ष था । उसने हाथ से स्पर्श किया और दर्द थोड़ी देर में ठीक हो गया । कोई दवा नहीं दी फिर ठीक कैसे हुआ ? अंगुलियों के द्वारा जो विद्युत् निकलती है, वह विद्युत शरीर में जाकर पीड़ा को तीतर-बीतर कर देती है । मर्दन करने वाले इतने कुशल होते हैं कि अंगुलियों के स्पर्श से पीड़ा को मिटा देते हैं । जैसे अंगुलियों से बिजली निकलती है वह शरीर को स्वस्थ बनाती है वैसे ही हमारी वाणी के द्वारा बिजली निकलती है । एक शब्द ऐसा कहा, वाणी का ऐसा प्रयोग किया, धनात्मक बिजली निकली और बीमार व्यक्ति भी खड़ा हो गया । एक शब्द ऐसा कहा गया कि जो व्यक्ति बीमार नहीं था, वह भी बीमार पड़ गया । बिजली अपना काम करती है । उससे पोजिटिव और नेगेटिव-दोनों प्रकार के कार्य होते हैं ।
__ तीसरा प्रमुख स्रोत है— दृष्टि । उससे बिजली निकलती है और वह बिजली जिस पर जाती है उसे प्रभावित करती है । विद्युत् की पृष्ठभूमि में छिपा रहता है भाव । जिस समय विधायक भाव है, उस समय आँख से विद्युत् रश्मियां निकलती हैं तो सामने वाले व्यक्ति को स्वस्थ बना देती है । जिस समय अच्छा भाव नहीं है उस समय विद्युत् रश्मियां अभिशापात्मक निकलती हैं, निग्रहात्मक निकलती हैं और वे व्यक्ति को रुग्ण बना देती हैं । यह आँख का काम है । हम आँख को बंद कर अन्तर्दृष्टि से देखें तो और ज्यादा शक्तिशाली काम हो जाता है । चाहें स्वयं को देखें, चाहें दूसरे को देखें, आँख बंद कर दूसरे को देखा जा सकता है और उसका प्रभाव भी उस रोगी पर पड़ सकता है । अपने शरीर के जिस अवयव को देखा जाता है, उस पर भी उसका प्रभाव पड़ता है ।
बहुत वर्ष पहले की बात है । जेठाभाई झवेरी आए । वे रोग से पीड़ित थे। गले में पट्टा बंधा हुआ था । उन्होंने कहा- मैं सीधा बैठ ही नहीं सकता। गले में पट्टा बंधा हुआ रखना पड़ता है । उन्हें प्राण-संचार का प्रयोग कराया गया । प्राण-संचार देखने का प्रयोग है । प्रयोग शुरू किया । वे प्रबुद्ध व्यक्ति थे। दूसरे दिन स्वयं प्रातःकाल सूर्य के सामने बैठ गए, प्रयोग किया । अनेक दिन इस प्रकार प्रयोग किया और पट्टा खुल गया । सीधे बैठने लगे । मैंने
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