Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 130
________________ ११६ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र में बदलने का अर्थ है— कर्म परिपाक का पता ही नहीं चलता । वह अपने आप मुक्त हो जाता है । • कर्म प्रदेश जितने राशि परिमाण में हैं, उस राशि परिमाण का अल्पीकरण हो जाता है । • असात वेदनीय कर्म का उपचय नहीं होता । इसका फलित यह है कि जो असात वेदनीय कर्म बंधा हुआ है उसका भी अपचय हो जाता है । अनुप्रेक्षा की इस निष्पत्ति का स्वास्थ्य के साथ संबंध है— असात वेदनीय का बंध नहीं होता और जो प्राचीन बंधा हुआ है, वह क्षीण अथवा शिथिल होता है । ये सारे अनुप्रेक्षा के परिणाम हैं । इनमें हम भावात्मक परिवर्तन, कर्म परिवर्तन और स्वास्थ्य परिवर्तन के सूत्र खोज सकते हैं । अनुप्रेक्षा : चार चरण प्रेक्षाध्यान में जो अनुप्रेक्षा का विकास हुआ है, उसमें पहली बात है उद्देश्य का निर्णय । हम सबसे पहले यह उद्देश्य बनाएं कि क्या करना है । अलग अलग अनुप्रेक्षाएं हैं और उनकी अलग अलग निष्पत्तियां है । यदि भय को दूर करना चाहते हैं तो अभय की अनुप्रेक्षा बहुत फलदायी है । यदि पारस्परिक कलह और संघर्ष को मिटाना चाहते हैं तो सामंजस्य की अनुप्रेक्षा बहुत उपयोगी है । इसीलिए सबसे पहले उद्देश्य का निर्धारण जरूरी है कि हम क्या बनना चाहते हैं ? उद्देश्य के आधार पर ही किसी अनुप्रेक्षा का प्रयोग हो सकता है । यदि स्वास्थ्य का विकास करना है तो स्वास्थ्य की अनुप्रेक्षा करें । प्रेक्षा ध्यान में अभी तीस से अधिक अनुप्रेक्षाओं के प्रयोग चल रहे हैं । इतनी ही पर्याप्त नहीं हैं, इनमें भी विकास का अवकाश है, सैकड़ों सैकड़ों अनुप्रेक्षाओं के प्रयोग विकसित किए जा सकते हैं । किन्तु उनके विकास और प्रयोग का आधार यही है कि हमें क्या होना है । उद्देश्य के अनुरूप ही अनुप्रेक्षा का प्रयोग निर्धारित हो सकता है । एकाग्रता का विकास । जो उद्देश्य बनाया है, उस पर दूसरा तत्व हैपूर्ण एकाग्र बनें । तीसरा तत्व है Jain Education International मन और मस्तिष्क पर आदेश का गहराई से प्रयोग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186