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अनुप्रेक्षा और स्वास्थ्य
प्रेक्षा और अनुप्रेक्षा– दोनों जुड़े हुए शब्द हैं । देखो, चिन्तन करो,सुझाव दो और जैसा चाहो, वैसा बनो-यह अनुप्रेक्षा का सिद्धांत है | अनुप्रेक्षा का विकास केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से नहीं हुआ है । उसका पहला उद्देश्य है भावात्मक परिवर्तन, व्यक्तित्व निर्माण । हम अपने आपको बदल सकें, यह परिवर्तन का सिद्धांत है । जब हम भावना को बदल सकते हैं तब अन्य समस्याओं में भी परिवर्तन ला सकते हैं । स्वास्थ्य उससे स्वतः फलित होता है ।
परिवर्तन का सूत्र
परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण सूत्र मिलता है उतराध्ययन सूत्र में । प्रश्न किया गया— भंते ! अनुप्रेक्षा से जीव क्या प्राप्त करता है ? महावीर ने उत्तर दिया- अनुप्रेक्षा के द्वारा जीव को अनेक उपलब्धियां होती हैं
० जो कर्म बहुत प्रगाढ़ रूप में बंधा हुआ है, वह शिथिल बंधन में बदल जाता है ।
० जो दीर्घकालीन स्थिति वाला है, वह अल्पकालिक स्थिति वाला बन जाता है।
० जिन कर्मों का विपाक तीव्र होने वाला हैं, वह मंद हो जाता है । विपाक का मंदीकरण अथवा प्रदेशोदयीकरण हो जाता है । कर्म का विपाक होगा तो बहुत मंद होगा, जिसका पता ही नहीं चलेगा । विपाकोदय को प्रदेशोदय
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