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अनुप्रेक्षा और स्वास्थ्य ११७ करें, आदेश को आत्मसात् कर लें । हम जो होना चाहते हैं, उसे आदेश की भाषा में प्रस्तुत करें। जैसे अभय का विकास करना है तो उसे आदेश की भाषा में इस प्रकार प्रस्तुत करें- 'मैं अभय का विकास करना चाहता हूं | भय की भावना समाप्त हो रही है । अभय का भाव विकसित हो रहा है ।' मस्तिष्क को सुझाव और आदेश दें- अभय का विकास करना है । हाइपोथेलेमस, जो भावधारा का मुख्य केन्द्र है, को सुझाव दें- तुम ऐसे स्रावों का प्रयोग करो, जिससे अभय की वृत्ति विकसित हो जाए ।
चौथा तत्व है— अनुभूति या भावनात्मक शाब्दिक प्रयोग । मस्तिष्क को आदेश देने के बाद अनुभूति को उसके साथ जोड़ो । अभय की भावना विकसित हो रही है - यह केवल शब्दोच्चार तक सीमित न रहे । इसे अनुभूति के साथ जोड़ो, भावना के साथ जोड़ो । शक्ति आती है भावना के द्वारा | योग में एक बहुत अच्छी बात कही गई है— हरीतिकी को भावना से भावित करो, उसकी शक्ति बढ़ जाएगी । य र ल व - ये बीज तत्व माने जाते हैं । भावना के द्वारा इनमें शक्ति पैदा हो जाती है । भावना पूर्वक, अनुभूति पूर्वक शब्दों का प्रयोग करो, अभय का अवतरण होने लग जाएगा ।
यह अनुप्रेक्षा की प्रयोग - पद्धति है । इन चार चरणों में हम अनुप्रेक्षा का प्रयोग करें, परिवर्तन निश्चित घटित होगा ।
आटोजेनिक ट्रेनिंग
यह आश्चर्य की बात है— अनुप्रेक्षा का सिद्धांत हमें मिला लेकिन हमने इसके बहुत प्रयोग नहीं किए । पश्चिम के लोगों ने इसका बहुत उपयोग किया। ओटोजेनिक ट्रेनिंग में हर अवयव को सुझाव दिया जाता है । यह स्वजनित प्रशिक्षण की पद्धति प्रोफेसर जोह्वानिज एच शुल्ज ने विकसित की है । इस पद्धति में शरीर के प्रत्येक अवयव पर अनुप्रेक्षा का प्रयोग किया जाता है । यदि पाचनतंत्र खराब है तो पाचनतंत्र पर ध्यान केन्द्रित कर सुझाव दिया जाता है— 'पाचनतंत्र स्वस्थ और सक्रिय हो रहा है।' लीवर, किडनी, आंतें - प्रत्येक अवयव का अनुप्रेक्षा से संबंध है । ओटोजिनिक ट्रेनिंग में शरीर को यह सुझाव दिया जाता है- 'तुम शक्तिशाली बन जाओ, अपनी शक्ति का पूरा प्रयोग करो । जो बीमारियां हैं, उन्हें बाहर फेंक दो ।' इन शब्दों को अनुभूति के
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