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११४ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र होता है । इसमें भी हमारा गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है । खड़े खड़े कायोत्सर्ग करते हैं तो गुरुत्वाकर्षण बहुत कम हो जाता है । जब गुरुत्वाकर्षण बढ़ जाता है, तब गुरुत्वाकर्षण भी भार पैदा करता है । कायोत्सर्ग की अवस्था में बैठे हैं तो गुरुत्वाकर्षण कम हो जाएगा । लेटकर कायोत्सर्ग करें तो भी यही स्थिति बनती है । यह सामान्य प्रकार है । कायोत्सर्ग के दो प्रकार और भी हैं। वाम-पार्श्व शयन कायोत्सर्ग और दक्षिण-पार्श्व शयन कायोत्सर्ग बांयीं और दांयीं करवट लेट कर कायोत्सर्ग करना । जब कभी सक्रियता लाना है, प्राण ऊर्जा को बढ़ाना है, बायीं पार्श्व सोकर कायोत्सर्ग करें । इसमें पिंगला (सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम) सक्रिय बन जाता है । जब हम दायीं ओर लेटकर कायोत्सर्ग करते हैं तो पेरा सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय बन जाता है ।
इस प्रकार कायोत्सर्ग की अनेक निष्पत्तियां और परिणतियां हैं । स्वास्थ्य की दृष्टि से विचार करें, मन के बोझ को उतारने की दृष्टि से विचार करें,मानसिक और शरीररिक तनाव को कम करने की दृष्टि से विचार करें तो कायोत्सर्ग के नए-नए पहलू हमारे सामने आते हैं | यदि पूछा जाए कि प्रेक्षाध्यान की पद्धति में आधारभूत प्रयोग क्या है तो उत्तर होगा-कायोत्सर्ग । प्रेक्षाध्यान का प्रारंभ बिन्दु कायोत्सर्ग है और अंतिम बिन्दु भी कायोत्सर्ग है । आत्मा की साधना का पहला और अंतिम बिन्दु भी कायोत्सर्ग है । इसीलिए इसे आत्मिक स्वास्थ्य का अमोघ सूत्र भी कहा जा सकता है
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