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११२ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
मन ढोता है । एक छोटी-सी घटना घटती है, वह चली जाती है, किन्तु उसका भार मनों-टनों से भी ज्यादा हो जाता है । इतना भार हमारा मन और मस्तिष्क ढोता है । वह भार कैसे मिटाया जाए? इसके लिए बहुत सुन्दर प्रयोग है कायोत्सर्ग ।
भार का विशोधन
पूछा गया— 'भंते ! कायोत्सर्ग से क्या होता है ?' कहा गया- 'जो भार है, उसका विशोधन होता है । कोई ऐसा आचरण या व्यवहार हो गया, ऐसी कोई घटना हो गई और उससे मन पर जो बोझ आ गया, उसका विशोधन होता है । प्राचीन काल में प्रायश्चित्त की विधि कायोत्सर्ग ही रही। अमुक व्यवहार अकरणीय हो गया, आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करो । अमुक व्यवहार अकरणीय हो गया तो पन्द्रह श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, पच्चीस श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग अथवा क्रमशः हजार श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग । कायोत्सर्ग एक प्रक्रिया रही है भार विशोधन की, प्रायश्चित्त की। उससे आगे एक और महत्वपूर्ण सूचना दी गई है-जब प्रायश्चित्त की विशुद्धि हो जाती है, जब वह बोझ उतर जाता है, तब हृदय शान्तिपूर्ण हो जाता है। जैसे अनाज की बोरी ढोने वाला उसे ढोते समय बड़े भार का अनुभव करता है, किन्तु जब वह उस बोरी को उतार कर विश्राम लेता है तो उसे ऐसा अनुभव होता है, जैसे वह बिल्कुल हल्का हो गया है | हमारे आचरणों, व्यवहारों, घटनाओं, परिस्थितियों का जो दिमाग पर मानसिक बोझ होता है, कायोत्सर्ग करते ही एकदम हल्का हो जाता है । व्यक्ति असीम सुख-शान्ति का अनुभव करता है । शारीरिक तनाव से मुक्ति, मानसिक तनाव से मुक्ति तथा स्वास्थ्य की अमूल्य निष्पत्तियां और सूचनाएं इसके द्वारा दी गई ।
समाधान है संवर
कायोत्सर्ग के बिना न मन की शुद्धि हो सकती है और न दिमाग की। इसका भी एक आध्यात्मिक, तात्विक कारण है | आश्रव और संवर— ये दो समस्या पैदा करने वाले हैं । आश्रव मानसिक विकृति को पैदा करता है और भावात्मक विकृति को भी पैदा करता है | जहां आश्रव है, वहां विकृति पैदा
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