Book Title: Mahavira ka Swasthyashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 119
________________ प्रेक्षाध्यान और स्वास्थ्य १०५ देखने की पद्धति है-ऊपर को देखो, मध्य को देखो और नीचे को देखो। शरीर को तीन भागों में विभक्त कर दिया गया-शरीर के ऊपरी भाग को देखो, शरीर के मध्य भाग को देखो, शरीर के अधोभाग को देखो । सारी शक्तियां कहां निहित हैं ? शरीर में ही निहित हैं । शरीर को देखना है । इसे आँख खोलकर जितना अच्छा देखा जा सकता है, उससे अधिक अच्छा आँख का संयम कर देखा जा सकता है विचार को देखें हम देखने के द्वारा चार समस्याओं का समाधान करें । अनिद्रा रोग का समाधान और पाचनतंत्र की समस्या का समाधान-ये शारीरिक हैं । तीसरा है अच्छा मन । मन के प्रति हमारी जागरूकता बढ़े, अनिष्ट चिन्तन न हो, क्योंकि जब-जब व्यक्ति किसी दूसरे के प्रति अनिष्ट चिन्तन करता हैं तब तब सामने वाला व्यक्ति प्रभावित होता है या नहीं, चिन्तन करने वाला निश्चित प्रभावित होता है । हमारे व्याख्याकारों ने इसका बहत सुन्दर वर्णन किया है कि अनिष्ट चिन्तन से किस प्रकार के अनिष्ट पुद्गलों का विकिरण होता है ? वे हमारे शरीर को कैसे प्रभावित करते हैं ? मन को भी देखना सीखें । वह भी एक संस्थान है | जो चिन्तन आ रहा है उसको भी देखें। किस प्रकार का विचार आ रहा है इसकी प्रेक्षा करें । चिन्तन को देखें । विचार को देखेंगे तो चिन्तन स्वस्थ बनेगा, मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होगा और शरीर भी अच्छा रहेगा। भाव को देखना सीखें चौथी बात है-भाव को देखना सीखें । कौनसा भाव पैदा हो रहा है, इसके प्रति जागरूक रहें । यह सबसे महत्त्वपूर्ण बात है-जो भाव पैदा होता है, उसको देखें ? क्रोध कहां पैदा हो रहा है ? उसी समय क्रोध को देख लें । क्रोध आगे बढ़ेगा ही नहीं । स्थूल को क्या देखेंगे ? मूल तो यही है कि क्रोध को देखें । इसका तात्पर्य है जहां क्रोध पैदा हो रहा है, उस स्रोत को देखें । क्रोध आगे नहीं बढ़ेगा । क्रोध वहीं शान्त हो जाएगा । अहंकार पैदा हो रहा है | आप तत्काल देखें-अहंकार कहां पैदा हो रहा है ? हमारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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