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१०४ महावीर का स्वास्थ्य - शास्त्र
पूछा -- यह कैसे हुआ ? क्या कोई दवा ली थी ? उन्होंने कहा- प्राण संचार के प्रयोग से यह दर्द मिट गया। जो दवा ले रहा था, वह भी छूट गई ।
बीमारी को मिटाता है शरीर
एक प्रबुद्ध व्यक्ति ने कहा- हम दवा लेते हैं, दवा एक बार बीमारी की रोक-थाम करती है किन्तु बीमारी को मिटाती नहीं है । मैंने कहा- बीमारी आखिर मिटेगी कैसी ? शरीर ही बीमारी को मिटाता है । यह प्राकृतिक चिकित्सा का तो मूल सिद्धान्त है । मेडिकल साइंस का भी यही मंतव्य है कि क्षति की पूर्ति करना, शरीर को स्वस्थ बनाना, शरीर का ही काम है । शरीर में ऐसी व्यवस्था है कि एक आँख काम कम करती है तो दूसरी आँख उसका पूरा सहयोग करने लग जाती है । एक किडनी कम काम करती है तो दूसरी किडनी पूरा दायित्व अपने ऊपर ओढ़ लेती है और जीवन भर काम चला देती है। कोई भी अवयव कम काम करता है तो दूसरा उसका पूरा सहयोग करेगा । यह भी स्वाभाविक व्यवस्था है कि जिस अवयव में कमी होती है दूसरा अवयव उसका सहायक बन जाता है । यह समाज के सीखने की बात है कि एक अवयव की कमी होने पर शरीर का दूसरा अवयव किस प्रकार उसका सहयोग करता है । सामाजिक प्राणी शायद ऐसा नहीं करते । यह एक बोधपाठ है कि बिना सहयोग किये दूसरा व्यक्ति स्वस्थ कैसे रहेगा ? शरीर भी स्वस्थ नहीं रह सकता यदि दूसरा अवयव सहयोग न करे । मस्तिष्क की एक कोशिका कम काम करती है तो दूसरी सक्रिय बन जाती है । किसी घर में दो नौकर होते हैं । एक बाहर जाता है, अवकाश पर रहता है तो अकेला नौकर दोनों का काम संभाल लेता है । किन्तु शायद समाज में ऐसा नहीं होता । एक व्यक्ति कमजोर है तो उसके दायित्व को कोई दूसरा संभाल ले, ऐसा नहीं होता है किन्तु शरीर में यह सारी प्रक्रिया चलती है ।
वास्तव में बीमारी को कौन मिटाता है ? शरीर ही मिटाता है । हमारे शरीर में पैदा होने वाले रसायन ही शरीर को दुरुस्त करते हैं । इसके लिए केवल एक अपेक्षा है कि हम देखना सीख जाएं। यह देखने की कला आ जाए तो काफी परिवर्तन हो सकता है । महावीर की ध्यान करने की पद्धति जप करने की पद्धति नहीं है । जप सहायक हो सकता है । वह ध्यान की पद्धति नहीं है, न कोई दूसरा प्रयोग करने की पद्धति है किन्तु वह केवल
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