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९२ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
काया का साधना के साथ क्या संबंध है ? वस्तुतः शरीर के साथ साधना का बहुत गहरा संबंध है | हम शरीर के स्नायविक संस्थान को अच्छा अभ्यास नहीं देंगे तो मन भी अच्छा नहीं रहेगा। गहराई में जाएं तो यह सिद्धान्त फलित होगा- मन और वाणी-ये स्वतंत्र नहीं हैं । शरीर के द्वारा वाणी का संचालन होता है और शरीर के द्वारा मन का संचालन होता है। यदि हमारा स्वरयंत्र ठीक नहीं है तो वाणी का सम्यक् प्रयोग नहीं हो पाएगा । यदि मन को संचालित करने वाला मस्तिष्कीय संस्थान ठीक नहीं है तो मन का कार्य भी सम्यक् नहीं होगा ।
___मन, वाणी और श्वास–इन सबका संचालक कौन है ? इन सबके संचालक संस्थान शरीर में हैं। उन संस्थानों को स्वस्थ और सक्रिय बनाए रखने के दो प्रमुख साधन हैं- आसन और प्राणायाम । इसमें पहला स्थान आसन का है | आसन के द्वारा जो नियंत्रक संस्थान है, उनका सम्यक संचालन करेंगे तो मनुष्य स्वस्थ रहेगा ! पाचनतंत्र, श्वसनतंत्र, उत्सर्जन-तंत्र- ये हमारे शरीर के मुख्य विभाग हैं । बेचैनी, उदासी, डिप्रेशन- आदि का कारण भी यही बनता है । स्वस्थ रहने की शर्त है कि उत्सर्जन तंत्र, पाचन-तंत्र और श्वसनतंत्र स्वस्थ रहे । यदि हम इन पर ध्यान न दें, आसन के द्वारा इनका सम्यक् संचालन सुनिश्चित न करें तो डाक्टर और दवा की शरण में जाने के सिवाय कोई गति नहीं है ।
आसन की प्रक्रिया
एक प्रश्न है-आसन की प्रक्रिया क्या है ? आसन का क्रम कैसे शुरू करें? महावीर की वाणी में आसन की जो प्रक्रिया मिलती है, वह बहुत महत्वपूर्ण है । तीन प्रकार के आसन किए जाते हैं
० लेटकर किए जाने वाले आसन । ० बैठकर किए जाने वाले आसन । ० खड़े होकर किए जाने वाले आसन ।
आसन प्रारंभ किस स्थिति में करें ? जैनसाधना पद्धति के अनुसार सबसे पहले लेटकर आसन करना चाहिए । उसके बाद बैठकर आसन करें और उसके बाद खड़े होकर आसन करें । लाडनूं में प्रेक्षाध्यान का शिविर चल रहा था। दिल्ली से एक योगी आए । आसनों के विषय में चर्चा चली । मैंने
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