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प्रेक्षाध्यान और स्वास्थ्य
प्रेक्षाध्यान के दो रूप हैं । एक रूप है आध्यात्मिक चेतना का विकास, दूसरा रूप है चिकित्सात्मक । श्वास-प्रेक्षा आदि के द्वारा आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है । प्रेक्षा के विशिष्ट प्रयोगों की साधना के द्वारा स्वास्थ्य की समस्याएं भी सुलझती हैं । उसका मूल हेतु है— प्रेक्षा, देखना । देखने की कला बहुत कम लोग जानते हैं | सुनना भी कम लोग जानते हैं पर देखना तो बहुत कम लोग जानते हैं । देखने की अपनी विशिष्ट कला है । कैसे देखें? हम दूसरों को देखते हैं, उस आधार पर चिकित्सा की विधि स्थापित
अनेक प्रकार की दीक्षाएं मानी गई हैं । एक है स्पर्शन की दीक्षा । एक है दर्शन की दीक्षा । एक पूरी पद्धति है स्पर्श चिकित्सा की । एक प्राणवान् व्यक्ति रोगी के रोग के स्थान का स्पर्श करता है और उसकी बीमारी दूर हो जाती है । यह स्पर्शन चिकित्सा है । इसका प्रयोग चलता है | बहुत सारे प्राण-चिकित्सक अपने स्पर्श से रोगी के शरीर का या अवयव का स्पर्श करते हैं और रोगी स्वस्थ हो जाता है ।
स्पर्श चिकित्सा प्रचलित है किन्तु दर्शन चिकित्सा अभी प्रचलित नहीं है | किन्तु यह बड़ी महत्वपूर्ण चिकित्सा है, दीक्षा है । गुरु अपनी दृष्टि के द्वारा किसी को दीक्षा देते हैं, देखते हैं और वह व्यक्ति फिर से निरोग हो जाता है । यह प्रसिद्ध तथ्य है, गुरु अनुकम्पा की दृष्टि से देखता है तो प्राण शक्ति
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