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९८ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र जाग जाती है और निग्रह की दृष्टि से देखता है तो समस्या पैदा हो जाती है । अनिमेष प्रेक्षा का प्रयोग करने वाले जानते हैं-किसी एक वस्तु को देखना शुरू करो, पहले मिनट में उसका आकार भिन्न होगा, दूसरे मिनट में वह वस्तु बदल जाएगी और जैसे-जैसे समय बीतेगा, नए-नए रूप बनते चले जाएंगे। दस मिनट के बाद वह दृश्य वस्तु रहेगी नहीं, और कुछ उसके स्थान पर आ जाएगा । जिन्होंने अनिमेष प्रेक्षा का प्रयोग किया है, वे जानते हैं, किस प्रकार एक चित्र सामने रखा और वह नाना रूपों में बदलता चला गया ।
विचित्र है दर्शन की शक्ति
दर्शन शक्ति है । देखने की शक्ति विचित्र है । शरीर में कहीं पीड़ा है | उस स्थान को बिन्दु बना लो, अंगुली टिका दो, संकल्प करो और उसी स्थान पर अन्तर्दृष्टि टिका दो । आंख की जरूरत नहीं, केवल अन्तर्दृष्टि का प्रयोग करो । दस-बीस मिनट के बाद ऐसा लगेगा कि पीड़ा है ही नहीं । ऐसा क्यों होता है ? इसका कारण भी समझ लेना चाहिए | हमारे शरीर में सारी क्रिया चलती है प्राण के द्वारा । मस्तिष्क पूरे शरीर का कंट्रोल रखता है । मस्तिष्क संचालित होता है विद्युत् तरंगों के द्वारा, रसायनों के द्वारा । देखने से हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के रसायन पैदा होते हैं | इतने सारे रसायन हमारे शरीर में पैदा होते हैं कि उनकी आदमी कल्पना ही नहीं कर सकता । एक श्वास जो हम छोड़ते हैं, उसमें ४०० रसायनों का बिम्ब होता है । जहां पवित्र भाव होता है, विधायक भाव होता है वहां अच्छे रसायन पैदा होते हैं। देखने के साथ-साथ रसायन पैदा होते हैं भाव के द्वारा । जहां भाव पवित्र है वहां अमृत तुल्य रसायन पैदा हो जाएगा । यदि भाव विपरीत है तो जहरीला रसायन पैदा हो जाएगा ।
भावों के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है हमारे स्वास्थ्य का । कर्मचारी का अधिकारी ने तिरस्कार किया । अधिकारी के द्वारा किया जाने वाला तिरस्कार पाचनतंत्र को विकृत बना देगा । कोई बीमारी नहीं है, व्यक्ति स्वस्थ है किन्तु निजी व्यक्ति तिरस्कार करता है तो पाचनतंत्र एकदम अस्त-व्यस्त हो जाता है । क्रोध का प्रबल आवेश आया, अस्थमा की बीमारी हो जाएगी । एक व्यक्ति मन की बात कहना चाहता है किन्तु उसे कहने का अवसर ही नहीं मिलता । वह मन में दबी हुई भावना की बात माईग्रेन पैदा कर देगी । चिन्तायुक्त
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