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तब
योगासन और स्वास्थ्य ९५ किया जा सकता है । जब किसी वस्तु का अनुसंधान बंद हो जाता है, केवल पुरानी बात ही सामने आती हैं । आज मेडिकल साइंस में विकास का युग चलता है । इसलिए चलता है कि निरंतर अन्वेषण, प्रशिक्षण और प्रयोग चल रहे हैं । उसके आधार पर केवल फिजियोथेरेपी में घुटने के दर्द के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम विकसित किए गए हैं। पुराने साहित्य में ऐसा नहीं मिलता । फिजियोथेरापिष्ट आसन का सुझाव कम देते हैं, व्यायाम का सुझाव अधिक देते हैं ।
यह अपेक्षित है- हम महावीर की स्वास्थ्य - साधना को समझने के लिए प्राचीन आधार लें तो साथ-साथ नए आसनों का विकास भी करें । हठयोग में इस सन्दर्भ में काफी विकास हुआ है कि किस बीमारी में कौन-सा आसन करना चाहिए। हृदयरोग है तो कौन - सा आसन करना चाहिए । आज यह नहीं माना जाता है कि हृदयरोगी को आसन नहीं करना चाहिए । यह कहा जाता है- हृदयरोगी को भी अमुक-अमुक प्रकार के आसन करने चाहिए । सुगर की बीमारी है तो अमुक आसन करना चाहिए । प्रत्येक रोग के लिए आसनों की तालिका निश्चित है और उसका उपयोग भी किया जाता है, कराया जाता है । इस दृष्टि से इन आसनों का बहुत गंभीर अध्ययन करें । केवल पुराने ग्रन्थों के आधार पर ही नहीं, वर्तमान शरीरशास्त्र और शरीर क्रियाशास्त्र के सन्दर्भ में यह देखें कि इनका फंक्शन क्या है ? क्रियाएं क्या हैं ? परिणाम क्या है ? इन सबके आधार पर प्राचीन और अर्वाचीन— दोनों तथ्यों का विश्लेषण करें तो आज भी नए-नए आसनों का विकास किया जा सकता है ।
स्वास्थ्य, साधना और आसन
हमारे सामने दो पक्ष हैं— स्वास्थ्य का पक्ष और साधना का पक्ष | यह निश्चित है— स्वास्थ्य का पक्ष कमजोर है तो साधना का पक्ष भी शक्तिशाली नहीं बनेगा। स्वास्थ्य और साधना में गहरा संबंध है । स्वास्थ्य सम्यक् नहीं है तो साधना कहां से होगी ? बहुत लोग ऐसे हैं, जो एक मिनट में चालीस श्वास लेते हैं । वे लम्बा श्वास नहीं ले सकते । उनके फेफड़े इतने कमजोर हैं कि लंबा श्वास लेने की ताकत उनमें नहीं है । इस स्थिति में साधना कैसे होगी ? बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो ध्यान करने बैठते हैं और जम्हाइयाँ ही जम्हाइयाँ लेते हैं, अथवा डकारें ही डकारें लेने लगते हैं । वे कैसे ध्यान
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