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योगासन और स्वास्थ्य ९३ कहा- हमारी साधना पद्धति में सबसे पहले लेट कर आसन करने का विधान है। पूज्य गुरुदेव का एक ग्रन्थ है मनोनुशासनम् । उसमें भी इसी क्रम को रखा गया है। योगी ने कहा- यह बहुत वैज्ञानिक क्रम है । इसमें एक शिशु की भांति क्रम का निर्देश है । बच्चा पहले कौन-सा आसन करता है ? वह पहले कभी खड़ा होकर आसन नहीं करता। वह पहले लेटकर आसन करता है । फिर बैठना सीखता है और फिर खड़ा होना सीखता है । दो महीने का शिशु खड़ा हो जाए, ऐसा कभी नहीं होता । हमारे जीवन का एक क्रम है। जब हमारी जीवन की यात्रा गर्भ में शुरू होती है तब आसनों का क्रम शुरू हो जाता है।
गर्भस्थ शिशु भी करता है आसन
आगम साहित्य में यह बतलाया गया है— जन्म लेने के बाद ही नहीं, गर्भ में भी बच्चा आसन करता है । गर्भावस्था में किए जाने वाले अनेक आसनों का उल्लेख है | ठाणं सूत्र में विस्तार से यह बतलाया गया है कि गर्भावस्था में शिशु किन-किन आसनों में रहता है । कभी वह पार्श्वशयन आसन करता है, कभी वह उत्तानशयन आसन करता है, कभी वह अवमशयन आसन करता है । इनमें भी बच्चा ज्यादा उत्तान-शयन आसन करता है । वह सीधा सोता है | बहुत कठिन है सीधा सोना । बहुत लोग सीधे नहीं सो पाते । कायोत्सर्ग में यह प्रयोग कराया जाता है— 'सीधे सोकर पहले तीन बार खूब तनाव दो, फिर ढीला छोड़ दो ।' लेटने का दूसरा प्रकार है अधोमुख शयन । यह पेट के लिए बहुत उपयोगी आसन है । लेटने का एक प्रकार है पार्श्वशयन । बहुत लोग इस बात को जानते हैं कि भोजन के बाद बाएं पार्श्व से सोना चाहिए । उस समय सूर्य स्वर चलता है, दांयां हिस्सा सक्रिय होता है | इससे पाचन में काफी सुविधा होती है । जब दाएं पार्श्व सोते हैं, तब बायां स्वर चलता है । इससे मन की प्रसन्नता बढ़ती है । जिन लोगों के उच्च रक्तचाप है, जो हाईब्लडप्रेशर से पीड़ित हैं, उनके लिए बाएं स्वर का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण है । वे दाएं पार्श्व से सोएंगे तो उच्च रक्तचाप में संतुलन आएगा । जिनके निम्न रक्तचाप की समस्या है, वे बाएं पार्श्व से सोएंगे तो दायां स्वर चलेगा, पेरासिम्पेथिटिक नर्वस सिस्टम अधिक सक्रिय होगा, निम्न रक्तचाप संतुलित हो जाएगा ।
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