Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
अहिंसा की पुण्यभूमि राजगीर से हम पावापुरी के लिए रवाना हुये । राजगृह के आसपास जो पांच पहाड एकत्र है, उनमे से लम्बे विपुलगिरि को दाहिनी तरफ करके हम चले। रास्ते में काम आयेगा, इस खयाल से मकदूम-कुण्ड का पानी भरकर साथ ले लिया। मकदूम-कुण्ड का स्थान स्वाभाविक रूप से ही रमणीय है । वहाँ नहाने की व्यवस्था करने मे इन्सानियत का खयाल रखा गया है, देखकर सन्तोष हुआ । परन्तु आसपास मछलियो की और मुरगी की हत्या होती हुई देख चित्त मे ग्लानि पैदा हुई । जिस इस्लाम ने पहले से यह निश्चय कर लिया था कि काबा के मन्दिर मे मनुष्य या पशु की हिंसा नही होनी चाहिए वह इस्लाम क्या ऐसा नियम भी नहीं बना सकता कि जहाँ-जहाँ तीर्थ स्थान या इबादत की जगह है वहाँ-वहाँ अमुक एक निर्दिष्ट मर्यादा तक प्राणी की हत्या नही होनी चाहिये। इस्लाम का यह दावा है कि आखिरी और सहल धर्म है । ऐसे धर्म में भी इतनी वात तो जोडी जा सकती है कि जो अभय-दान कावा के मन्दिर मे है, वही अभय-दान हर एक पवित्र स्थान के लिए भी होना चाहिये।
मेरे विचार तेजी के साथ अहिंसा की खोज में भविष्य काल की तरफ दौड रहे थे और उतने ही वेग से हमारी मोटर अहिंमा की पुण्य भूमि की तरफ हमे ले जा रही थी।
विपुल गिरि के साथ हम सात मील तक पूरब की तरफ चले और वहां सूर्य के अस्त की तैयारी के साथ-साथ हमारे भाग्य का उदय हुआ, क्योकि यहाँ हमने जो प्राकृतिक दृश्य देखा, वह सहज नही भुलाया जा सकता । जहाँ विपुलगिरि का उत्तुग शिखर समाप्त होता है, वही सुभग-सलिला पचान या पचानवेद नदी के रास्ते मे आडे आती है। यह स्पष्ट दिखाई देता था कि वह हमसे कहना चाहती थी, 'यहाँ एक रात ठहरकर न जायो " पर, हमारी मोटर की तरफ ध्यान जाते ही उसने सोचा-'ये लोग जीवन-प्रवाही नहीं हैं, तैल-प्रवाही हैं।' (या पेट्रोल-प्रवाही कहे १) ये ठहरेंगे नही ।
सचमुच यह स्थान इतना सुन्दर था कि अगर मीता माता यहाँ पाई होती, तो कम-से-कम तीन रात ठहरे विना आगे न जानी । भव्य पहाड की