Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन सदेश
बाहुवलि ने भावोचित रजोगुण का पूर्ण उत्कर्ष दिखा कर अपने तेज को प्रकट कर दिया और उसमे अन्तहित प्रकाश को पहचान कर वे स्वय सात्विकता के शिखर पर चढ गए । सवसे नीचे की सीढी से ऊपर चढने मे कोई बुराई नहीं है। बुराई तो शिखर की ओर जाते हुए बीच मे रुक जाने मे है । निस्सन्देह प्रत्येक प्रतापी पुरुष वाहुबलि के जीवन की ओर अवश्य आकर्षित होगा, क्योकि करनी करके नर से नारायण हो जाने वाला यह उदाहरण प्रत्येक मनुष्य को ऊचा उठाने वाला है। बडे-बडे शिल्पकारो ने वाहुवलि की विशाल मूर्तियां बनाई है। इन मूर्तियो मे बाहुबलि के जीवन के एक-एक प्रसग को चित्रित खोद कर अकिंत करने में कारीगरो ने अपनी सारी शक्ति लगाई है। इस प्रकार की दो सुन्दर मूर्तियां दक्षिण भारत मे अव भी मौजूद है। इन्ही मूर्तियो के सौन्दर्य के कारण ही इनका नाम 'गोमटेश्वर' पड़ा है।
मैं सन् 1925 मे कारकल गया था। वहां की पहाडी पर बाहुबलि की 47 फीट ऊ ची एक मूर्ति देखी थी। इस वर्ष जुलाई के महीने मे श्रवणवेलगोल की 57 फीट ऊची मूर्ति भी देख पाया हूँ। कारकल पश्चिमी घाट पर मगलूर और उडपी-मालपे के कोने मे है, जव कि श्रवणबेलगोल मैसूर राज्य के हासन जिले मे चन्द्रगिरि और विध्यागिरि के बीच वसा हुआ है। श्रवणवेलगोल की मूर्ति विध्यागिरि की चोटी के पत्थर मे से ही काट कर बनाई गई है। जव कि कारकल की मूर्ति पहाडी से भिन्न प्रकार के पत्थरो मे से बना कर, पहाडी के ऊपर दूर से लाकर खडी की गई है। यह सव किस प्रकार किया गया होगा, इसका अन्दाज लगाना भी आज मुश्किल है । श्रवणवेलगोल के दर्शनो की याद अब भी ताजी है।
२. श्रवण-बेलगोल हिन्दुस्तान में मैसूर राज्य को विशेष अर्थो मे स्वर्ण-भूमि कहा जा सकता है । उरगाव कोलार की सोने की खानो मे प्रति वर्ष करोडो रुपये का सोना निकलता है, इस वजह से मैसूर राज्य को स्वर्ण-भूमि कहा ही जा सकता है। लेकिन वहां की सरस तथा उपजाऊ भूमि, स्थान-स्थान पर चमकते हुए तालाव, बीच-बीच मे मस्तक ऊचा कर वर्षा को पकड ले पाने वाले छोटे-बडे पहाड और उनमे वे अमृत-जल पाने वाली नदियां, प्रात और सध्या के रग-विरगे वादल और वहां के हृष्ट-पुष्ट तथा आतिथ्य-सत्कार करने