Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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समस्त हिन्दू
की दृष्टि अलग-अलग है । श्रार्यसमाजी लोग मूर्ति पूजा का विरोध करते है । पुनर्जन्म के बारे मे हर एक की दृष्टि अलग-अलग है । पुनर्जन्म और सापराय (मरणोत्तर जीवन) एक वस्तु नही हे । दयानन्द सरस्वती और पूर्वमीमांसावादी श्रात्यतिक मोक्ष को स्वीकार नही करते । पूर्वमीमामी लोग सन्याम श्राश्रम को भी नही मानते ।
ऐसी हालत मे सनातनी, श्रार्य समाजी, ब्राह्मो, जैन, बौद्ध, लिंगायत, सिक्ख श्रादि सब विभाग का प्रतर्भाव हो सके ऐसा लक्षण हमे चाहिये । 'सर्व धर्म समादर, भूतानुकूत्य भजते', और 'हिंसया दूयते चित्तम्' यह सच्चे प्रोर अच्छे हिन्दुओ का लक्षण जरूर कहा जा सकता है । सर्व धर्म समादर वृत्ति प्राचीन रोमन लोगो मे भी थी। चीनी लोगो मे भी यह पायी जाती है । भूतानुकूल्य धर्मं - मात्र का लक्षण होना चाहिये । हिन्दू वृत्ति में वह विशेष रूप से प्रकट हुआ है । हिन्दू ने आज तक कई वार हिंसा की है । बाहार के लिये भी, श्रात्मरक्षा के लिये भी और अन्याय के प्रतिकार के लिये भी । लेकिन वह हिंसा का पुरस्कार नही करता । 'हिंसया दूयते चित्त यस्यासौ हिन्दुरीरित यह लक्षण हिन्दू स्वभाव के लिये और हिन्दू संस्कृति के लिये यथार्थ दीख पडता है । एक परदेशी ईसाई मिशनरी ने राधाकृष्णन का Hindu View of Life पढा । उससे प्रभावित होकर उनसे कहा If this is Hinduism I am a Hindu - 'यदि वह हिन्दूधर्म है तो मैं हिन्दू हूँ ।'
आज तक हम कहते आये है कि दुनिया के तीन धर्म ऐसे हैं, जो अपने लोगो का अपना धर्म छोड कर दूसरे धर्म मे जाना वरदाश्त कर सकते है । लेकिन औरो को किसी भी शर्त पर अपने धर्म मे लेने को तैयार नही है । ये तीन धर्म है सनातनी हिन्दू, यहुदी और जरथुस्त्री पारसी । हिन्दू समाज के बारे मे यह बात बहुत कुछ सही हे । लेकिन आर्य समाजी और वौद्ध औरो को अपने फिरके मे ले सकते है और लेते भी है । स्वामी विवेकानन्द ने सिस्टर निवेदिता आदि शिष्यों को हिन्दू धर्म मे ले लिया । एक यूरोपियन ईसाई महिला ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था । उसे काशी विश्वनाथ के मन्दिर मे प्रवेश मिलना ही चाहिये - ऐसा श्राग्रह गाँधीजी का था । हम तो मानते है कि मूर्तिपूजा के जो घोर विरोधक नही है, ऐसे सब लोगो को हमारे मन्दिरो मे प्राने देना चाहिये । चमडे की जूतियाँ मन्दिर मे न लाने की मर्यादा का और शिष्टाचार का वे पालन करें, इतने से हमे मन्तोष रखना चाहिये ।