Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 183
________________ धर्म-भावना का सवाल 167 रखता था। आगे चलकर अपने और अपने मित्रो के घर मे स्वदेशी चीनी का आग्रह रखने लगा। होटल मे जाकर खाना छोड दिया । लेकिन मुसाफिरी मे परदेशी चीनी के पदार्थ ले सकता था। जब स्वदेशी का आग्रह आगे जाकर वढा तो स्वदेशी-परदेशी दोनो तरह की चीनी ही छोड दी। तब भी दवा के लिये स्वदेशी मिश्री लेने की छूट रखी थी। बुद्ध भगवान् ने अपने भिक्षुत्रो से कहा था कि जानवरो को मत मारो। धर्म के नाम से यज्ञ मे जो पशु मारे जाते थे उनका निषेध जैसा भगवान नेमिनाथ ने किया था वैसे भगवान् बुद्ध भी करते थे। लेकिन उन्होने अपने भिक्षुत्रो से कहा था कि मै मास भोजन का निपेध नही करना हूँ। अगर खास तुम्हारे लिये कोई पशु मारता है तो वह मास तुम्हे नही खाना चाहिये । लेकिन अगर कही किसी के घर पर मास पक ही गया है और वह तुम्हे खिलाता है तो ऐसा मास खाने मे हर्ज नही। शायद वुद्ध-महावीर के दिनो मे हर घर में मास पकता ही था । मासाहार न करने का नियम कोई भिक्षु करे तो उसे आसानी से भिक्षा नही मिलती और लोगो को भिक्षुमो के लिये खास अलग रसोई वनानी पडती। भिक्षुमो के अनेक नियमो मे यह भी एक नियम होता है कि अपने आहार के लिये गृहपति को कम से कम तकलीफ दी जाय । जो चीज अनायास मिले उसी से अपना भोजन सम्पन्न करे। भगवान् महावीर ने अपने समय के साधुनो के लिये कैसे नियम बनाये थे उसका स्पष्ट चित्र मिलना जरूरी है। लेकिन उस पर से हम अाज अपने लिये नियम नही बना सकते । __ जो मासाहारी थे उन्होने मासाहार का धीरे-धीरे त्याग किया। उसमे भी कई नियम बनाये गये थे। कैसे पक्षी या जानवर का मास खा सकते हे और कैसा मास नही खा सकते, इसके विस्तृत वर्णन मनुस्मृति आदि ग्रन्थो मे पाये जाते है। मनुष्य की प्रगति धीरे-धीरे और क्रमश हाती है। आज जैनियो ने वहुबीज कन्द और फल खाना भी छोड दिया है। जैन धर्म के इतिहास से हम देख सकते है कि हमारे लोग कहाँ थे और कहाँ पहुँच गये है । कभी-कभी उत्साह मे आकर लोग बहुत कुछ आगे वढने है और फिर अतिरेक से पछता कर सौम्य नियम बनाते है । चन्द साधु श्वासोच्छवास के द्वारा होने

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