Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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धर्म-भावना का सवाल
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लेना चाहिये । चन्द लोग यज्ञ करते हुये भी उसमे पशु-हत्या न करते हुये उडद के आटे का पिष्ट-पशु बनाते थे।
प्राचीन काल के ऐतिहासिक सबूतो के साथ हम ऐसी खीचातानी क्यो करे ? भगवान् बुद्ध ने बिगडे हुए मास का बनाया हुया पदार्थ खाया होगा और उप्तसे उनका देहान्त हुमा होगा । सचमुच शूकर मद्दव क्या था ? इसकी खोज हम कर सकते है । लेकिन अगर यह सिद्ध हुआ कि भगवान् बुद्ध ने खाया था वह मास ही था तो हम समझ जायेगे कि बुद्ध भगवान् ने आखिर तक मासाहार त्याग का निश्चय नही किया था। हम यह दलील करने नहीं बैठेगे कि जब स्वय बुद्ध भगवान् ने आखिर तक मास खाना नही छोडा था तो फिर हम क्यो छोडे ? जिसे छोडना है वह तो मासहार छोडेगा ही और जिसे नही छोडना है उसे अगर बुद्ध भगवान का उदाहरण नहीं मिला तो और किसी का मिलेगा।
किसी असती, कुलटा की बात है कि उसके रामायण-महाभारत सुनने के बाद किसी ने उससे पूछा कि इन पवित्र ग्रन्यो के पढने से तुम्हे क्या बोध मिला ? उसने तुरन्त कहा, 'द्रौपदी के पाँच पति थे।' सीता, सावित्री, मन्दोदरी, गान्धारी की वाते भी तो उन ग्रन्थो मे थी।
ऐतिहासिक सशोधन के बारे में हमे नाजुक बदन, चिडचिडा या touchy नही बनना चाहिये । सत्य निर्णय के लिये वाद-विवाद चाहे जितना चले, उसमे धर्म-भावना की वात नही लानी चाहिये ।
_ 'रिलिजियस लीडर्म' किताव के बारे मे जो चर्चा चली और काण्ड हुआ, उस पर से हमे वोध लेना चाहिये । वह किताब मैने पढ कर देखी, मारी पूरी नही, किन्तु इस्लाम के नवी के बारे में जो लिखा है, और गांधीजी के बारे मे जो लिखा है उतना पढ गया। लिखने वाले की नीयत के बारे मे मन मे प्रादर पैदा नही हुमा ।
भगवान् श्रीकृष्ण के जमाने मे उनके बारे मे लोगो ने भला-बुरा बहुत-कुछ कहा था । कृष्ण भक्तो ने कृष्णचरित्र लिखते वे सव वाते लिख रखी है। उस पर से हम इतना ही वोध लेते हे कि दुर्जन तो क्या, अश्रद्धालु टीकाकार भी ऐसा ही सोचेगे और ऐसा ही कहेगे।