Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 192
________________ 176 महावीर का जीवन सदेश ___ इतने साल का इस माला का कार्य देखते और उसका सिंहावलोकन करते हुये, इस माला के प्रति आदर पैदा होता है। माला की लोकप्रियता से होन्मत्त होकर इस प्रवृति पर असह्य नये बोझ लादने की भूल प्रवर्तको ने नहीं की, यह अभिनन्दनीय है । प्रवर्तको की यह प्रौढता इस माला को पोपक सिद्व हुई है। माला ने बम्बई के संस्कारी गुजरातियों मे-केवल जैनो मे ही नही बल्कि इतर लोगो मे मी-जो विचार की उदारता कायम की है वह कोई मामूली कार्य नहीं है । अाज हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, सुधारक, उद्धारक सव तरह के लोग इस माला मे भाग लेते है । और, श्रोता-लोग विवेक और आदर पूर्वक उनकी बाते सुनते है और अपनाते है। भगवान् महावीर का जीवन चरित्र, अहिंसा और उनका तपस्या प्रधान उपदेश, जैन धर्म के सिद्वान्त की खूवियाँ और वारीकियां इत्यादि विषय तो इममे होते ही है। इसके अलावा धर्म के विनिमय के तमाम साहित्यिक, सामाजिक, आर्थिक और अन्य शास्त्रीय क्षेत्र भी यहाँ खोले जाते हैं और विकसित किये जाते है। मैने खुद यहाँ किन-किन विपयो पर व्यारयान दिये उसका मुझे स्मरण नही है। लेकिन सास्कृतिक-जागृति और सास्कृतिक समन्वय के अनेक पहलुग्रो मे से जिम साल जो पहलू मुझे महत्त्व का लगा उस साल उस पहलू के बारे मे बोलने का मैंने रिवाज रखा। इस साल मेरी दृष्टि के अनुसार महामानव के साक्षात्कार पर यहाँ कुछ विचार पेश करना चाहता हूँ। मनुष्य की अदम्य जिज्ञासा ने जांच-पड़ताल और अध्ययन के लिये असख्य विपय खोजे है। आसमान के सितारों से लेकर पृथ्वी के गर्भ की ज्ञात अजात धातुनो तक कोई भी चीज मनुष्य ने अपने जिज्ञासा क्षेत्र से बाहर नही रखी। पदार्थ-विज्ञान, रसायन-शास्त्र, जीवविद्या, गणित और फलज्योतिप, इत्यादि शास्त्रो मे मनुष्य ने कई विभागो पर चिन्तन किया है। लेकिन मनुष्य के रस और उपके जीवन की कृतार्थना को देखते हुये यह मालूम होता है कि जांच-पड़ताल और अध्ययन की दृष्टि से मनुष्य के लिये मनुष्य खुद ही सब से महत्त्व का विषय है। "प्रात्मान विजानीयात्" इस ऋपि-वचन का जितना चाहे उतना विस्तृत अर्थ कर सकते है। अगनी जात को पहचानने के लिये मनुष्य ने हर

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211