Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
178
महावीर का जीवन सदेश
शक्ति का उपासक होकर मनुष्य ने मानवता का साक्षात्कार करने के लिये राजनीति का प्राश्रय लिया और अनेक धर्म जो न कर सके वह सगठनशक्ति के बल पर सिद्ध करने का बीडा उठाया। मनुष्य के यह प्रयोग अभीअभी शुरू हुए है और उनकी आजमाइश चालू ही है।।
लेकिन यह प्रयोग ज्यो-ज्यो जटिल होते जाते है त्यो त्यो मनुण्य देखने लगा है कि इन प्रयोगो मे मतलव की कोई महत्व की चीज ही रह जाती है। शारीरिक और बौद्धिक-शक्ति, सगठन-शक्ति, तालीम और प्रचार के जरिये खिलती विचार-शक्ति--इन शक्तियो का नये-नये और अद्भुत ढग से इस्तेमाल करने पर भी मनुष्य अपने ध्येय की ओर आगे नही बढ सकता। यह देखकर अब वह अन्तर्मुख होने लगा है । शक्ति की उपेक्षा करके सदाचार का जीवित प्रचार करने का काम सतो ने प्राचीन काल से किया है। उसका गहरा असर हुआ है लेकिन वह (असर ) व्यापक नहीं है । यह देख कर और यह महसूस करके कि इस मार्ग मे अपनी जाति के ऊपर ही सब से ज्यादा अकुश रखना पडता है, उम के प्रति मानव-जाति कुछ अश्रद्धालु और कुछ उदासीन बनी
और उसने सैन्य-शक्ति, कानून की बागडोर, आर्थिक-सगठन और तालिम के प्रचार द्वारा ध्येय प्राप्ति का मनसूवा किया। लेकिन इसमे वह सफल रहेगी ऐसा विश्वास उसको नही हुआ।
पुरानी परिभाषा मे कहे तो सतो के विकसित किये हुये कल्याण मार्ग -~-शिव मार्ग पर मनुष्य को श्रद्वा होते हुये भी वह उस मार्ग को व्यापक न कर सका, और सेनापतियो ने तथा राज्यवर्तामो ने यह अनुभव किया कि उनका अत्यन्त आग्रह और विश्वासपूर्वक बताया हुआ शक्तिमार्ग सफल सिद्ध नही होता। अत अव मनुष्य जाति ने शक्ति-तत्त्व को शिव-तत्व के अधीन किया। शिव-शक्ति के समन्वय के द्वारा वह अपनी उन्नति करने की बात सोच रही है।
इस तरह के प्रयोग पुराने समय से हो रहे है। फिर भी अभी-अभी मनुष्य-जाति उस मार्ग पर अधिक ध्यान देने लगी है। लेकिन यहाँ भी फिर पुराना अनुभव होता है कि शक्ति की पार्थिव अथवा पाशविक शक्ति से शिव तत्त्व का सामर्थ्य बढने के बजाय घटता है और वह अप्रतिष्ठित होता है। अत पार्थिव और पाशविक शक्ति का पूरा बहिष्कार करके शिवतत्त्व मे ही जो