Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 179
________________ धार्मिक व्यक्तिवाद "दुनिया भले ही मान ग्रायें, मैं तो श्रमाहारी ही रहेंगा, दुनिया भने कल-कारखाने और बडे-बडे शहर की संस्कृति चहाती जाये, 1 मे ग्रपने इर्दगिर्द गांव का वातावरण ही सभाले रहेंगा, दुनिया भले युद्ध की तैयारियों करे, और समय-समय पर खूनखार युद्ध चलाने में हाथ नहीं दूँगा और युद्ध मे रोक नही हूँगा, दुनिया मने विलाम और मनाचार में टूब जाय, मैं अपने लिये निर्विवारिता और ब्रह्मचयं का ही भागा, दुनिया मे भले प्रव्जपतियो का राज्य चने में तो किचन, परिग्रही रहूँगा, दुनिया में भने पटिन-मे-जटिन पवनवन चढता जाम, मैं अपने जितना स्वावनवन और स्वयंपूर्णता लेकर बैठूंगा--" यह है भारत में धर्म पानन का तरीका | दुनिया में बने हो धमं वले, मेरा गपना व्यतिगन जीवन धर्मपरायण हा तो मुझे तोप है। धमनिष्ठ लोगों का यह व्यक्तिवाद है । 1 व्यापारी कहता है 'मे अपना स्वार्थ मनान लूँगा. मेरे यहाँ आकर चीज खरीदने वाले ग्राहक उना अपना स्वाथ समाने में क्यों उनके स्वाथ को मभालने का जिम्मा लू? Let the buyers beware हर एक अपनेअपने स्वार्थ को गभाल लेगा तो दुनिया में श्राप-ही-प्राप धम की याने गवके स्वार्य की रक्षा होगी ।' यह हुआ स्वायं का व्यक्तिवाद । क्या पहने धार्मिक व्यक्तिवाद मे और दूसरे स्वार्थ के व्यक्तिवाद मे कोई विशेष फर्क है ? धार्मिक व्यक्तिवाद कहना है कि एक श्रादमी अगर अपने धर्म का शुद्ध और परिपूर्ण पालन करे तो श्रीरी को धर्म का पालन करना ही पडेगा । वे उदाहण देते हैं कि नौग्स फ्रेम (चोयटा) का एक कोना पकडकर अगर हमने उसे ठीक काटफोन बना दिया तो बाकी के कोन श्राप ही ग्राम काट-कोन वन जायेग । यह श्रद्धा ठीक है | जब तक चार ही कोने वाली फ्रेम का सवाल है, मिद्धान्त ठीक बैठता है । लेकिन अगर फ्रेम के कोने वढ गये तो एक कोन ठीक करने मे वाकी के आप ही ग्राप ठीक नही होते । I उसमें कोई शक नही है कि मेरा अधिकार मेरे जीवन तक ही मीमित है | लेकिन मेरा वर्त्तव्य वहाँ पूरा नहीं होता। मैं अपने को तो जरूर समालू

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