Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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सर्व त्याग या सर्व स्वीकार ?
इसीलिये कहते है कि धर्म का प्रचार, धर्म-प्राण, तेजस्वी मनुष्य की प्रेरणा के विना नही होता ।
वडे-बडे समाजो के लिये व्यापक सामाजिक धर्म का जिन्हें ने विस्तार से चिन्तन किया और लोगो को रास्ता दिखाया उनको हम धर्मकार कहते है । वैदिक ऋपि, मनु, याज्ञवल्क्य आदि स्मृतिकार, गौतम बुद्ध, महावीर आदि पथप्रदर्शक, हजरत मूसा, हजरत ईसा, हजरत मुहम्मद, हजरत कन्फ्यूशियस आदि पैगम्बर ये सब मनुष्य जाति के प्रधान नेता है । इन्होने अपने-अपने वश के लोगो को रास्ता दिखाया । उनके बाद भी उनके अनुयायियों ने देश और काल की मर्यादा लाघकर इन धर्म-सस्थापको के उपदेश का फैलाव किया ।
अव धर्म की मूल प्रेरणा कहाँ से आई यह सवाल गौण हो गया । श्रव तो धर्म-सस्थापक, उनके वचनो का सग्रह करने वाले धर्म ग्रन्थ, उनको गद्दी पर बैठने वाले उनके शिष्य श्रीर उनके द्वारा स्थापित परम्परा, यही हो गया धर्म का मूल उद्गम या स्रोत । श्राज जो धर्म के नाम झगडे होते है, अनाचार - अत्याचार होते हे वे सब इस तन्त्रनिष्ठा के कारण ही होते है । धर्म-निष्ठा की जगह तन्त्रनिष्ठा आ गई । 'हमारा धर्म सच्चा, तुम्हारा धर्म झूठ या कच्चा । हमारे धर्म का हम फैलाव करेंगे। दूसरे धर्मों की खच्ची करेंगे । यही सर्पात्मक प्रवृत्ति चली, फैल गई । धर्म के अनुसार जीवन परिवर्तन करने की बात गौण हो गई । अपने धर्म का अभिमान रखना, दूसरो के धर्मो के प्रति श्रनादर या तिरस्कार रखना, दूसरे धर्म की नुक्ताचीनी करते रहना और धर्म के नाम पर मघर्ष बढाना, यही एक वडी प्रवृत्ति हो गई ।
इस विपम और भयानक परिस्थिति से बचने के लिये मानव कल्याणकारी दीर्घदृष्टि उदार महात्मानो ने सर्व-धर्म-सहिष्णुता, सर्व-धर्म-समभाव का सार्वभौम युग-धर्म वताया ।
हमारा धर्म पर विश्वास है । हम मानते है कि सर्व-धर्म-समभाव वाला सार्वभौम धर्म अन्यान्य सब धर्मो मे सामजस्य स्थापित करेगा ।
लेकिन जिनके प्रति हमारे मन मे गहरा श्रादर है ऐसे लोकहितचिन्तक हमे कहते है धर्ममात्र के प्रति जिनके मन मे कोई विशेष प्रदर, प्रास्था या निष्ठा नही रही ऐसे लोग आपकी बात मानेगे सही । लेकिन क्या