Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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जीवन-व्यापी अहिंसा और जैन समाज
145 का साहित्य ले पाते है। लेकिन विश्व समस्या के हल करने मे अपना हिस्सा नही लेते।
आज जो अहिंसात्मक सामाजिक नवजीवन का क्रान्तिकारी प्रयोग भूदान-ग्रामदान के नाम से चल रहा है, उसे बढावा देने मे जैन-समाज अग्रसर क्यो नही,
सम्पत्ति निर्माण मे और उसके न्याय-विभाग मे जो जीवन-व्यापी हिंसा चलती है उसे रोकने के लिये समाजवाद कोशिश कर रहा है । उसे जैन-धर्म का अविभाज्य अग बनाने की ओर जैन साधुओ का मानस क्या नही काम कर रहा है ?
भारतीय समाज मे ऊँच-नीच भाव दृढमूल बन गया है । यह जो भयानक विराट हिंसा भारत मे चल रही है उसे जडमूल से उखेडने का काम जैन-धर्म का अविभाज्य अग नहीं है ? सम्पत्ति के उपभोग मे और सम्पत्ति के उत्पादन मे भी मर्यादा का स्वीकार करना जैन-धर्म मे शुरू से कहा गया था। उसका क्या हुआ?
ये सब वाते छेडने का मेरा इरादा नही था। स्वर्गस्थ धर्मानन्द कोसवी के कुछ लेख के सिलसिले में मेरा ध्यान इस ओर खीचा गया । इसलिये जो कुछ लिखना पड़ा, उतना लिख करके मै खामोश हो जाता । जैन ममाज की अजागृति के बारे मे स्वय जैनो ने और औरो ने काफी लिखा है । किसी व्यक्ति या समाज की तौहीन करने से किसी का भी भला नही होता । केवल कटुता बढती हे और कभी-कभी दुर्जनता की वाढ पाती है।
लेकिन मैं देखता हूँ कि अव जैन ममाज मे विचार-जागृति के दिन आ रहे है । लोगो मे अपने जीवन-क्रम के बारे मे असन्तोप पैदा हो रहा है। जैन साधु भी अपना पुराना रूप छोडकर नये ढग से सोचने लगे है। दिगम्बर, श्वेताम्बर स्थानकवासी, तेरापन्थी ऐसे भेद से भी लोग अव ऊबने लगे है । पुराने ग्रन्थो का प्रकाशन करना, देशी भाषा मे या अग्रेजी मे अनुवाद कराना और बढिया कागज पर ग्रन्थ प्रकाशित करना, इसी को जो लोग धर्मसेवा का महत्त्वपूर्ण काम मानते थे उनमे भी नव-जागृति आने लगी है।
मै देखता है कि अब इस नव-जागृति मे यथासमय वाढ पायेगी, और जैन समाज कायापलट करेगा । जैन समाज रूढिग्रस्त है, लेकिन