Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन सदेश
अब सवाल उठता है कि क्या शास्त्र निष्ठा, ग्रन्थप्रामाण्य, गुरुवचन के प्रति अन्धश्रद्धा और सनातन कढि के प्रति पक्षपात ये मव धर्म-वृद्धि के लिए सचमुच आवश्यक है ?
जिस देश में एक ही धर्म चलता है, जहाँ का समाज एकजिनसी है, वहां ऐमी मकुचित श्रद्धा और निष्ठा शायद खतरनाक नही भी हो। लेकिन जिस देश में (और जिस दुनिया मे) अनेक धर्मों का साहचर्य है वहाँ पर या तो हरेक मनुष्य अपने-अपने धर्म का अभिमान के साथ पालन करे और समयसमय पर और धर्मों के साथ झगडे चलाने की तैयारी रखे अथवा सव धर्मों के प्रति सद्भाव रखकर अपने-अपने धर्म का पालन करे।
धर्माभिमानी लोगो के लिए यह दूसरो वात कठिन होती है। अपने विचारो से या रिवाजो मे जिनका मेल नही बैठता, उनके बारे मे सहानुभूति रखना उनके लिये कठिन होता है। पूरी शक्ति लगाकर कोशिश करे तो वे सहिष्णुता तक जा सकते है । जो चीज नापसन्द होते हुए भी जिसका नाश करना मुनासिव नही है उसी को हम सहन करते है । जिसे सहन करते हे उसे मन मे वुग तो मानते ही है । ऐमी हालत में मेल-जोल होना, प्रेम-सम्बन्ध वढाना तभी शक्य होता हे जब हम भेद के तत्वो को गौण मान सकते है, उमका महत्त्व कम करते है।
यह तभी बनेगा जब हम अपने धर्म की छोटी-छोटी बातो का महत्त्व कम करते है और मानवी सम्बन्ध के महत्त्व को बढाते है। धर्माभिमान यह कैसे सहन करेगा ? अभिमान चीज ही कृत्रिम है। इसलिये उसके खजाने मे कृत्रिम चीजे बहुत रहती है।
सच्चा रास्ता यह है कि जब ईश्वर की दुनिया मे अनेक धर्म है और उनके अनुयायी हमारे जैसे होते हुये भी भिन्न-भिन्न वस्तुप्रो पर, परस्पर विरोधी वस्तुओं पर कम या अधिक श्रद्धा रखते है, तब हमे उन सब बातो को सहानुभूति के साथ समझने की कोशिश करनी चाहिये ।
__ पशु के बलिदान के जैसा रिवाज हमे पापमूलक और घृणित लगे तो उसके प्रति आदर हो नहीं सकता । लेकिन बलिदान के पीछे जो अर्पण भावना है, ईश्वर-भक्ति है, त्याग वृत्ति है उसकी ओर ध्यान देने की और उसका आदर करने की शक्ति तो हमारे पास होनी ही चाहिये।