Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
नया समन्वय
जैनो का स्याद्वाद या अनेकान्तवाद कहता है कि सत्य एक ही है, फिर भी देखने वाले की दृष्टि एकागी होने के कारण सत्य का उमे पाशिक माक्षात्कार होता है । एक मनुप्य एक तरफ से देखकर सत्य का एक तरह से वर्णन करता है, दूसरा मनुष्य दूमरी तरफ से देखकर उमी सत्य का विलकुल विपरीत शब्दो मे निस्पण करता है। सांवला मनुप्य बिल्कुल काले मनुष्य के मुकाबले में गोरा मावित होता है और गोरे के माथ तुलना करने पर काला ठहराया जाता है। दिल्ली की दृष्टि में नागपुर शहर दक्षिण की ओर है। पूना के लोग उसे उत्तर की तरफ मानते है । नागपुर मे अगर पूछा जाय तो वह कहेगा, 'मैं अपने विश्व के केन्द्र स्थान में हूँ। 'पोदिच्य या दाक्षिणात्य जैसे विशेपण मैं अपने-मापको क्यो लगाऊँ ? हाँ, उममे कोई शक नही कि पूना मेरी दक्षिण की ओर है और दिल्ली उत्तर की तरफ ।'
स्याद्वाद घ्यान मे पाने के बाद बुद्धि और हृदय दोनो समन्वय की दृष्टि स्वीकार करने को तैयार हो जाते हैं ।
स्याद्वद की दृष्टि कहती है - भाइयो, अपने-अपने अनुभव दुनिया के सामने रखो। लेकिन दूमरे का अनुभव सही या गलत कहने का आपको कोई अधिकार नही है । आपके अनुभव की जड मे आपकी दृष्टि या भूमिका होगी। दूमरे की दृष्टि उसमे भिन्न हो सकती है। अपनी निजी भूमिका पर से उसको जो अनुभव हुअा वह आपसे भिन्न होगा ही। फिर भी वह आप मे कम सच्चा हो, इसका कोई कारण नहीं है । प्रापको जिस तरह अपने अनुभव का विश्वास होता है और आप उसका आदर भी करते है उसी तरह दूसरा भी अपने खुद के अनुभव के बारे मे करेगा ही। मले पाप दूसरे के अनुभव को स्वीकार न करें। उसके बारे मे तटस्थ रहिये । लेकिन दूसरे की दृष्टि के लिए श्रापके मन मे आदर अवश्य होना चाहिये । भिन्न-भिन्न दृष्टि के लिए आपके मन मे आदर अवश्य होना चाहिये । भिन्न-भिन्न दृष्टियो के बारे मे आदर होना समझदारी का और सस्कारिता का लक्षण है।
पुराने जमाने मे लोग वाद विवाद करते थे और कहते थे कि जो हार जाय वह दूसरे का शिष्य बने । कई लोग अपना सिर देने को तैयार हो जाते