Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
हम भूतपरस्त वने या भविष्य के सर्जक ?
97
पुरुषो के जीवन की तुलना की जाय तो अहिंसा के बारे में भगवान पार्श्वनाथ से भगवान् महावीर आगे बढे हुये ये । याज्ञवल्क्य की अपेक्षा सभव हे, गौडपाद और शकर ऊँची भूमिका पर पहुँच गये थे । टॉलस्टॉय को अहिंसा का जो दर्शन हुआ था, उससे महात्मा गांधी को अनेक गुना ज्यादा स्पष्ट और ज्यादा उज्ज्वल दर्शन हुआ था। लेकिन भूतकाल के उपासक और विभूतिपूजक लोग ऐसी वाते आसानी से मानने को तैयार नहीं होते। वैदिक काल के धर्मग्रन्थो मे वेदांग ज्योतिप भी है। उसके गणित में प्राज हम गलतियाँ देखते है क्योकि वह स्थूल गणित था । धर्मग्रन्थ दोपरहित, निन्ति होते है ऐसा मानने वाले लोगो के लिये वेदांग ज्योतिप की पहेली सोचने लायक है।
हमने जैन धर्म के एक भक्त को पूछा, 'जैन धर्म की अहिंसा मे उत्तरोत्तर विकास के लिए कुछ अवकाश है या नही ? क्या इस धर्म के लिए केवल भूतकाल ही है ? भविप्यकाल है ही नहीं?' तब उन्होंने जवाब न देते हुये मुझ ही से सवाल पूछा, 'आपकी राय क्या है ?” मैंने कहा कि जैसे गणित-शास्त्र दिन पर-दिन आगे बढता है और सूक्ष्म वनता जाता है, ज्योतिप शास्त्र में नये-नये आविष्कार होते जाते है और उसका क्षेत्र कल्पनातीत वढ रहा है, वैसे ही धर्मशास्त्र, अध्यात्मशास्त्र अधिकाधिक सूक्ष्म होते जाते है और उनमे पाइन्दा के लिये अभूतपूर्व विकास के लिए अवकाश है। विज्ञान बढता है, वैद्यक शास्त्र बढता है, मानसशास्त्र गहरा होता जाता है, उमी तरह अध्यात्म-विद्या भी बढती आई है और आगे बढ़ेगी। महावीर स्वामी को अहिमा का जो दर्शन हुआ था उससे आगे बढने वाले किसी पुरुप को देखकर महावीर स्वामी को ऐसा ही लगेगा कि अपना जीवनकार्य कृतार्थ हुआ।
इस बात को हम इन्कार नहीं कर सकते कि कभी-कभी सारा पुराना जमाना विगड जाता है, धार्मिक श्रद्धा क्षीण होती है, ऐसे अवसर पर अपने श्रेष्ठ पुरुपो का स्मरण करना और उनसे प्रेरणा पाना हितकर ही ह । लेकिन भविष्यकाल के बारे मे अश्रद्धालु बनना केवल नास्तिकता है। सच देखा जाय तो दुनिया के सब के सब धर्म अपना वाल्यकाल पूरा करके प्रौढ अवस्था को पहुँचे है। शायद पूरे पहुँचे भी नही है। धर्म के विकास मे पाँच सौ या हजार वरसो का कोई हिसाव ही नहीं।
मनुस्मृति के समाज-शास्त्र मे चन्द बाते जरूर अच्छी होगी, जो आज हम भूल गये है या खो बैठे है। लेकिन हम यह कह नही सकते कि मनुस्मृति मे जो समाज-विज्ञान पाया जाता है वही श्रेष्ठ था या उस मे कोई दोप थे ही