Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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हम भूतपरस्त बनें या भविष्य के सर्जक १
भारत प्रचलित लोककथाओ मे भूत-प्रेत श्रादि दुर्दैवी योनियो का वर्णन आता है । उसमे बताया जाता है कि भूतो के पाँव उलटे होते है और उनकी आँखे भी मनुष्य के जैसी मुख के श्रागे रहने के बदले पीछे रहती है ।
बचपन मे ऐसे वर्णन पढते घवराहट होती थी । आज उसका अर्थ स्पष्ट होता है । जो लोग भूतकाल की खोज करते हैं, भूतकाल के आदर्श की ओर जाते है और आदर्श सामाजिक जीवन भूतकाल मे ही था ऐसी मान्यता रखते है उनकी आँखे सिर के पीछे ही होनी चाहिये और उनके कदम आगे न बढते हुये पीछे-पीछे भूतकाल की ओर ही प्रयाण करते हे गे ।
हम मानते है कि सब से अच्छा युग भूतकाल मे ही था । उसका ह्रास होते-होते प्राज कलियुग श्राया है। आदर्श धर्म वेदकाल मे ही पाया जाता था । त्रिकालज्ञ ऋपि - मुनि प्राचीन काल मे ही थे । प्राचीन काल का जीवन शुद्ध पवित्र था । प्राचीन काल के लोग नीरोगी थे, बलवान थे, सामाजिक उत्कर्ष के सब नियम जानते थे और उनका पालन करते थे । उनकी शरीरयष्टि ऊँची रहती थी, वे दीर्घायु थे । दिन-पर-दिन वह सारा आदर्श जीवन बिगडता गया । अव लोगो की ऊँचाई भी कम होने लगी है । आगे जाकर लोग और भी वामन बनेंगे, अल्पायुपी बनेगे । भूतकाल ही स्वर्णयुग था ।
ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक अनुसंधान और उत्खनन द्वारा हजारो वर्षों का जो इतिहास मिलता है उस पर से सिद्ध होता है कि प्राचीन काल के मनुष्य श्राज के जितने ऊँचे नही थे । प्राचीन काल मे मृत व्यक्तियो के शरीर सुरक्षित ढंग से जमीन में गाडने के लिये बडे-बडे पत्थरो मे शरीर की प्राकृति जितना हिस्सा खोदकर उसमे शव को रखते थे और उस पर दूसरी शिला का ढक्कन रख कर पत्थर की वह शव सदूक जमीन मे गॉड देते थे । ऐसी जो प्राचीन सदूके मिली है, उन से पता चलता है कि हमारे पूर्वजो की शरीरयष्टि कितनी ऊंची थी । ईजिप्ट की मम्मी पर से भी पता चलता है कि प्राचीनकाल के लोगो की ऊंचाई आज से अधिक नही थी ।
जो हो, भूतकाल की भक्ति करने वाले लोगो के लिये भविष्यकाल मे कोई आशास्पद स्थिति है नही ।