Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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सुधारक धर्म मे सुधार
लेना चाहिये। जिन लोगो के पास हजारो वर्षों का अनुभव और इतिहास है, वे यदि धर्म - विकास और जीवन परिवर्तन का शास्त्र न रचे, तो वे ऋषिमुनियो की परम्परा को कलकित कर देगे । हमारे स्मृतिकार समय-समय पर धर्म-व्यवस्था मे परिवर्तन करते ही आये है । अब हमे ऐसे परिवर्तनो का एक सम्पूर्ण शास्त्र बनाना चाहिये। तभी हम अपने समाज का जहाज जीवनसागर मे सुरक्षित रूप मे चला सकेगे । इस प्रकार जीवन-व्यवस्था की वारवार परीक्षा करके जीवन के तत्त्वज्ञान को नये सिर से रचने वाले लोगो मे भगवान् महावीर एक अग्रगण्य महापुरुष थे । श्रव हम देखे कि उनका युग कैसा था ?
महाभारत के युद्ध की घटना श्रार्यों के जीवन मे वडी से वडी काति करने वाली मिद्ध हुई । अग्रेजो और जर्मनो के बीच के भातृद्वेप का विग्रह जिस प्रकार विश्वव्यापी वनकर आज की दुनिया को अभी भी परेशान कर रहा है, उसी तरह कौरव-पाडवो के बीच का वह सर्वनाशी महायुद्ध भारत की प्राचीन संस्कृति के लिए घातक सिद्ध हुआ । इस भारतीय युद्ध के पहने रतिदेव जैमे सम्राट् इस प्रकार के महायज्ञ करने में जीवन की सार्थकता मानते थे, जिनमे प्रतिदिन पच्चीस-पच्चीस हजार पशुओ का वध होता था । उस समय के राजा लोग सम्राट् बनने के लिए प्रतिस्पर्धा करके एक- दूसरे का नाश करते थे और एक दिग्विजय सिद्ध करने के लिए किये गये राजसहार का पाप धोने के लिए उतना ही हिंसक दूसरा यज्ञ करते थे । इसी कारण से भीष्माचार्य तथा धर्मराज के ममान पुण्य-पुरुपो ने क्षात्र धर्म को पापपूर्ण मानकर उसे धिक्कारना चाहा । मनुष्य की प्रखण्ड सेवा के कारण उसके कुटुम्वी बने हुए प्रसव्य पशुओ का - गाय, बैल श्रौर घोडो का --- यज्ञ के नाम पर सहार करने की सिफारिश करने वाले वेदो से सत्रस्त होकर एक ऋषि यह विद्रोही वचन बोल उठे 'विग्वेदा' वैदिक संस्कृति के सुवर्ण - काल मे ऐसा वचन कहना उतना ही साहमपूर्ण था जितना वरदून का युद्ध लड रहे हिडनवर्ग के समक्ष युद्ध का निषेध करना । हमारे वैदिक धर्म के अभिमानी पूर्वजो ने यह वचन भी लिख रखा है। यह बात उनकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता को मूचित करती है, साथ ही यह उस काल की ऊबी हुई धर्मवुद्धि की भी द्योतक है ।
भारतीय युद्ध, काठियावाड की भूमि पर परस्पर लडा गया यादवो का सहारक युद्ध तथा आस्तिक ऋषि द्वारा बंद कराया हुआ राजा जनमेजय