Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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सुधारक में धर्म सुधार
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आज उसी सगीत और नृत्य को अपनी सस्कृति की विशेषतायो के रूप मे हम सीखते है और उनका विकास करते है तथा दुनिया को उनकी कद्र करने के लिये निमत्रित करते है । एक जमाने में अपने बालको को खेलकूद मे समय विगाडने के लिये हम सजा देते थे, आज खेदकूद मे जो विद्यार्थी भाग नही लेते उनसे हम नाराज होते है । हमारी पोशाक के बारे में भी यही बात लागू होती है। हमारे देश में एक ऐसा जमाना भी हो गया है, जो मास और मदिरा के सेवन में ही प्रगति मानता था। आदर्श सदा झूले की तरह दो सिरो के बीच झूलते रहते हैं। फिर भी प्रगति जैसी कोई स्थाई चीज अवश्य है, और सभी जमानो को वाछनीय लगे ऐसे कुछ तत्त्वो का भी विकास होना चाहिये। इसका विचार हम आगे करेगे ।
सामान्यत यह देखा गया है कि समाज को स्थिरता और प्रगति दोनो तत्त्वो की रक्षा करनी होती है। यदि स्थिरता न हो तो सामाजिक सद्गुणो की पूजी एकत्र नही हो सकती, चरित्र का विकास नही हो सकता और मनुष्य का सामाजिक जीवन मे विश्वास भी नही बैठ सकता । उलटे यदि हम अपरिवर्तनवादी बन जाये, तो जीवन को जग लग जायेगा, जीवन सड जायेगा और सारे जीवन-रस सूख जायेगे। स्थिरता और प्रगति ये एक साथ रहने चाले तत्त्व कभी-कभी श्रम और विश्वास की तरह एक के बाद एक आते है। यह भी प्रगति का एक वडा सिद्धान्त है । इन दोनो की अपरिहार्यता को ध्यान मे रखकर ही सामाजिक जीवन के नियम बनाये जाने चाहिये । धर्मशास्त्रो ने समय-समय पर सामाजिक नियमो की रचना की है। हमारे समाज की मान्यता ऐसी बना दी गई है कि नियम ईश्वर के दिये हुये है अथवा सामान्य बुद्धि से परे रहने वाले अलौकिक दृष्टि के लोग ही नियम बना सकते है। प्रत्यक्ष व्यवहार मे तो सभी लोग इस विचार को ही प्रोत्साहन देते है कि धर्म की दी हुई समाज व्यवस्था में कोई परिवर्तन करने का अधिकार समाज को नहीं है। समाज-व्यवस्था प्रत्यक्ष अनुभव, उस अनुभव के आधार पर होने वाला विचार, समाज की भावनाये और समाज मे विकसित होने वाली सनातन श्रद्धा-इन्ही सब पर आधार रखती है। इनमे से श्रद्धा प्रत्येक समाज का मूलधन है। इस धन की रक्षा करना सामाजिक शक्ति का मूल-मत्र है।
___ यदि हम प्रतिक्षण परिवर्तन करते रहेगे तो, समाज वाल के ढेर जैसा हो जायेगा। उसमे धृति (Cohesion) का गुण अायेगा ही नही । और यदि