Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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जेनेतर
एक बार एक पुस्तक मेरे हाथ मे आई। उसका नाम था 'जैनेतर दृष्टि से जैन ।' उसमे मेरे भी दो लेख थे । अनेक बडे-बडे लोगो की पक्ति मे अपना नाम देखकर मुझे अच्छा तो लगा, लेकिन विशेष शोध तो उस दिन मैने यह की कि हम जैनेतर है। उसके पहले मै ऐमा कुछ जानता नही था ।
'इतर' शब्द बड़े मजे का है । यह शब्द मैने पहले-पहल सुना था कॉलेज मे पढाये जाने वाले, तर्कशास्त्र मे। 'मनुष्येतर भिन्न मनुष्य '-ऐसी शास्त्रशुद्ध, तर्कशुद्ध परन्तु ज्ञान मे शून्य की वृद्धि करने वाली व्याख्याये तर्कशास्त्र मे आती थी। 'जो मनुष्य नही है उससे जो भिन्न है वह मनुष्य है।' इसलिए घानी के वैल की तरह घूम-फिर कर जहाँ से चलते वही फिर आना होता था। तर्कशास्त्र की भी कैसी बलिहारी है कि इस प्रकार की व्याख्याये देकर वह ज्ञान मे वृद्धि करना चाहता है ?
इसके बाद 'इतर' शब्द सुनने में आया मद्रास की ओर के 'ब्राह्मणेतर' पक्ष के नाम मे। मैं यह मानता था कि ब्राह्मणेतर लोग हिन्दू तो होगे ही। एक बार मै मदुरा के एक ईसाई मित्र के घर ठहरा था। मैं उनका मेहमान था, इसलिए घरके सव लोगो को शाकाहार करना पड़ता था। मैने उनसे मजाक मे कहा 'शाकाहारी बनकर आप कुछ समय के लिए तो हिन्दू हो ही गये ।' लेकिन बाद में पता चला कि वे वास्तव मे 'ब्राह्मणेतर' पक्ष के माने जाते हैं। मैंने यह भी देखा कि वहाँ के ब्राह्मणेतर पक्ष का नेता भी दूसरा एक ईसाई ही है । जो मनुष्य ब्राह्मण नही है वह ईसाई हो या पारसी, ब्राह्मणेतर क्यो नही माना जा सकता' तर्क की दृष्टि का उपयोग करके मैने पूछा 'यह टेवल ब्राह्मणेतर मानी जायगी या नहीं ? यह लालटेन भी ब्राह्मणेतर है न ?'
जो लोग हम से भिन्न है उनके बारे मे कुछ न जानना और उन सबको एक हो नाम के नीचे लाना, यह मनुष्य-समाज का पुराना रिवाज है । वेदो मे भी यह दिखाई देता है कि जो प्रार्य नही हे वह दास या अनार्य है । इस प्रकार
* पर्युषण-पर्व के उपलक्ष मे अहमदाबाद मे आयोजित व्याय्यान-माला मे
ता. 12-9-31 को दिया गया भाषण ।