Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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जैननर
करते । लेकिन जिन लोगों को मोक्ष का, निर्वाण का अथवा कैवल्य का मार्ग मिल गया है, उन्हे तो सभी को निमंत्रित करना चाहिये । उनके यहाँ सबका स्वागत होना ही चाहिये । किसी धर्म की दीक्षा मिलने पर ही वास्तव मे मनुष्य उस धर्म का अनुयायी माना जा सकता है । जिस धर्म मे सबका स्वागत होता है, उसमे अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नही हो सकता । इस्लाम मे अस्पृश्यता नही है । ईसाईयो मे नही है, बौद्धों मे भी नही है । जैन मे भी नही हो सकती । लेकिन निरीक्षण करने से पता चलता है कि सनातन धर्म का असर जैनो पर भी हो गया है । मुसलमानो और ईसाईयों को भी इस बुराई की छूत लग गई है । सिन्ध मे एक मुसलमान से मेरी बात हो रही थी। अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए हिन्दुनो के अनेक दोप दिखाकर अत मे उसने मुझसे कहा "मै तो हिन्दुओ के हाथ का पानी भी नही पीता” उसकी बात चुपचाप सुन लेने के बाद मैने कहा “तव तो हिन्दू धर्म की विजय ही हुई न ? सनातनियो मे यह रिवाज है कि वे अपने से नीची कक्षा के लोगो के हाथ का पानी नही पीने। इस बात को श्राप जिस हद तक स्वीकारे उस हद तक आप हिन्दू हो गये । मुझे प्राप नीची कक्षा का आदमी भने कहें, लेकिन यह ऊंच-नीच का भेद तो हिन्दू कसौटी से ही मापा जायगा न ? और एक बार आपने हिन्दू कसौटी स्वीकार की फिर तो ऊंचा कौन और नीचा कौन, यह अपने आप सिद्ध हो जायगा ।"
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मजाक की वात को छोडकर मैं कहूँगा कि जैनो को इम ऊँच-नीच भेद तथा इस अस्पृश्यता को अपने समाज मे नही घुसने देना चाहिए था । मेरी दृष्टि तो जो अस्पृश्यता मे विश्वास रखता है वह जाति से भले ही जैन हो, लेकिन वास्तव मे जैनेतर ही है ? मोक्ष धर्म मे अस्पृश्यता कैसे हो सकती है ? जो मनुष्य उत्साह पूर्वक आत्मा का विकास करना चाहे, केवल आत्मा के कल्याण की दृष्टि से ही जीये, वह जैन है । दूसरो के प्रति जनूनी होने के बजाय स्वय अपने प्रति जनूनी होना और तपोमय जीवन व्यतीत करना कितना उत्तम हे ? सनातनियों ने एक आसान रास्ता खोज निकाला है । जो लोग मोक्ष के लिये आतुर है, उन्ही के लिये उसने मोक्ष धर्म रख छोडा है । सन्यास धर्म की दीक्षा लेकर यदि कोई उस के पालन मे शिथिलता दिखाये, तो सब कोई उसे धिक्कारते है । मोक्ष की लगन न हो तो कोई सन्यासी बनेगा ही क्यो ? मे तो मानता हूँ कि जिसे मोक्ष की, कैवल्य पद की लगन लगी है वही जैन है । वाकी के सब लोग जैनेतर है । उन्हे सनातनी भले ही कह लीजिये । सनातनियो मे सब के लिए स्थान है । समूह धर्म की कमीटी को सामने रखकर यदि जैन और जैनेतर का भेद हम करें तब तो जैन धर्म टिक ही नही सकता ।