Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर सपोरन कान
बहिष्कार करना भी हिंसा है। मानवता का और विश्व-वन्धुत्व का
द्रोह है।
गांधीजी के बाद यानी सत्याग्रह का शुद्ध सात्त्विक शाम्य पान र बार भी शस्त्र-युद्ध भी अनावश्यक, परिहार्य हिंसा है। यह बात दुनिया के राहाको किसी न किमी दिन मान्य होने वाली है । जैन धर्म को एक बात सुमं मानो नगी है । प्रचार धर्म होते हुये भी उसने और किसी धर्म की तरह बरस अनुयायियों की संख्या बढाने को कोशिश नहीं की है । जो भी पान गर राजी हुगा कि तुरन्त उसको अपना लेवल लगा कर सख्या वृद्धि का मधानिक मवार और लाभ पाने का प्रयत्न जैन धर्म ने नहीं किया है । सन्या वरि नही, किन्तु चारित्र्य वृद्धि ही सच्चे प्रचार का फल है।
मेरे मित्र श्री धर्मानन्द कोसबी जन्मना ब्राह्मण थे। बाद में एल बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। बौद्ध धर्म सीखने के लिये नेपाल, तिबन, मिनाल, बप्रदेश, सियाम प्रादि देशो मे वे घूमे। बाद मे सेवा के हेतु कई गार प्रमेय
और रूम गये। मेरे आग्रह से जब वे गुजरात विद्यापीठ में पारर रहने सम, तब उन्होंने जैन धर्म का अध्ययन किया, भगवान् पार्श्वनाथ का चातुर्मास
धर्म उनको भाया । पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म नामक उन्ह ने एक गिर भी लिखी है। उसमे उन्होंने लिखा है कि पार्श्वनाथ के चातुपोम धर्म में हो भगवान् बुद्ध और भगवान् महावीर की दो परम्पराएं प्रवृत्त हो । पागंताप के उपदेश का कोसवीजी पर इतना गहरा अमर हुआ था कि मरमाला सलेबना भी उन्होंने ली थी।
मैं मानता है कि जैन धर्म अगर रूढिवाद के बन्धन के मन मा वह अवश्यमेव सर्व-समन्वयकारी विश्व धर्म बनेगा । स्यावाद की परिगी सर्व-समन्वय में ही होनी चाहिये।