Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन सदेश
1. एक वार मै नागपुर की ओर रामटेक की पहाडी देखने गया था। उसकी तलहटी मे एक जैन मन्दिर है । उस मन्दिर के पास धन-दौलत होगी, अत उसकी रक्षा के लिए सिपाही, बन्दूक, तलवार सब कुछ रखा गया था। मै तो वह सब देखकर दग रह गया। मैने पूछा "क्या यह शाक्त मदिर है ? यहाँ मैं दुर्गापाठ करू ?" मन्दिर के पुजारियो ने मुझ से कहा “नही, नही, यह तो जैन मन्दिर है।" मेरी बात वे लोग समझे नही, और उनकी बात मैं नही समझा मैं वहाँ से लौट प्राया। मन मे विचार उठा जहाँ धन का सग्रह हे
और उसकी रक्षा के लिये जहाँ राज्यसत्ता की सहायता ली जाती है, जहां हिंसा के हथियार खुले तौर पर रखे जाते है, वहाँ जैन धर्म कैसे हो सकता है ? आखिर समूह धर्म ने जैन धर्म पर विजय प्राप्त कर ली है। आत्मा को भूल जाने के बाद और अनात्मा को ऊंचा मानने के वाद छोटे-छोटे प्राचारो का पालन किया तो भी क्या और न किया तो भी क्या ?
आज के दिन का उपयोग हृदय शुद्धि के लिए किया जाना चाहिये । हृदय शुद्धि तो होगी तब होगी, लेकिन हम विचार शुद्धि तो कर ले । जो मनुष्य प्रात्मा और अनात्मा का विवेक नही करता, जो मनुष्य केवल आत्मा को ही पहचानने और उसकी रक्षा करने का प्रयत्न नहीं करता, वह धार्मिक नही है, जैन तो वह किसी भी हालत मे नही है।
इस्लाम मे एक सिद्धान्त का बडे जोरो से उपदेश किया गया है। ईश्वर एक है, अद्वितीय है, उसके साथ किसी दूसरे मनुष्य को या पदार्थ को मिलाया नही जा सकता, शरीक नही-किया जा सकता, यह इस्लाम का एक महान् सिद्वान्त है। ईश्वर के साथ दूसरे किसी को मिलाने के गुनाह को 'शिर्क' कहा जाता है । जो मनुष्य शिर्क का गुनाह करता है वह मुशरिक है- काफिर है। इम्लाम का यह सिद्वान्त मुझे अच्छा लगता है। हम अपनी परिभापा मे इस सिद्धान्त का विचार करें। अतर्यामी परमात्मा ही हमारी शुद्ध आत्मा है । उसके साथ हम अनात्मा को मिला दे, तो यह 'शिक' का गुनाह होगा। जो मनुष्य केवल आत्मा के प्रति ही सच्चा है, आत्मा की उन्नति के लिए ही जीता है, अनात्मा के मोहजाल मे नही फसा, वही जैन है। बाकी के सब लोग जैनेतर है । इस शुद्ध विचार की दृष्टि से क्या हम सभी जनेतर नहीं है ? कौन आत्मा परायण है और कौन नही है, यह तो मनुष्य का अपना अन्तर ही उससे कह सकता है। बाहरी जीवन से तो लगता है कि मै भी जैनेतर हूँ और पाप लोग भी जैनेतर हैं। फिर भी यदि इस समाज में कोई जैन हो तो उसे मेरे हजार-हजार प्रणाम ।