Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन सदेश
नही है । मिश्र देश मे वडी-वडी मूर्तियां है, लेकिन वे ऐसी अकड कर बैठी है कि राजत्व के सब लक्षणो और चिन्हों से युक्त होते हुए भी ऐसी मालम पडती है, मानो वलात् बैठने के लिए बाध्य की गई हो । यहाँ ऐसा नहीं है। इतनी बडी मूर्ति भी इतनी सलोनी और सुन्दर हे कि भक्ति के साथ-साथ प्रेम की भी अधिकारी हो गई है।
वहुधा मूर्तिकार सम्पूर्ण मूर्ति को तो सुन्दर बना देते है, परन्तु जिसके द्वारा व्यक्तित्व का उभार दिखाया जाता है, उस चेहरे को नहीं बना पाते । इसलिए किसी मूर्ति को देखने समय में उसकी मुखामुद्रा की ओर निराशा की अपेक्षा लेकर ही डरते-डरते देखता हूँ | अच्छी से अच्छी मूर्तियो मे भी कुछ न कुछ त्रुटि रह जाती है । दूध-शक्कर मे नमक की ककडी मिल ही जाती है। इस मूर्ति का सहज आगे आया हुआ अधरोष्ठ देख कर मन मे शका हुई कि अव मेरा उत्साह नष्ट होने वाला है। इसलिए विशेष ध्यान पूर्वक देखने लगा। आगे से देखा, वगल से देखा, छिद्रान्वेषी की दृष्टि से देखा और भक्ति की दृष्टि से देखा। किसी न किसी निर्णय पर तो आखिर पहुंचना ही था । जब-तक मैं मूर्ति के सौन्दर्य को देखता रहा, तब-तक कुछ निश्चय न कर मका। चित्त मे अनिश्चितता की अस्वस्थता फैलने लगी। परन्तु शीघ्र ही मैं सचेत हो गया और मैने पागल मन से कहा-"सौन्दर्य का तो यहाँ ढेर है, लेकिन यह स्थान सौन्दर्य खोजने का नही है । यदि मुख-मण्डन पर रूप-लावण्य हो, पर भाव न हो तो वह मूर्ति पूजनीय नही हो सकती। वह कुछ प्रेरणा ही नहीं दे सकती। यह मूर्ति यहां दुनियादारी की दीक्षा देने नही खडी है । इस मूर्ति से पूछो, यह स्वय तुमसे सब कुछ कह देगी।"
नज़र बदली और उस मूर्ति की भावभगिमा की ओर ध्यान गया। फिर तो कहना ही क्या था ? क्षण भर मे ही वैराग्य और कारुण्य का स्रोत बहने लगा। नही-नही, वैराग्य और कारुण्य का झरना झरने लगा और मन उसके प्रवाह मे नहा कर भव्यता के शिखर पर चढने लगा। एक आचार्य ने ऐसी ही किसी मूर्ति के दर्शन करते समय कहा है-यत्कारुण्यकटाक्षकान्तिलहरी प्रक्षालयत्याशयम्'-'जिसकी कारुण्यपूर्ण कृपादृष्टि के जल प्रवाह से हृदय के भाव धुल कर स्वच्छ हो जाते है।' इस वर्णन की यथार्थता का पूरापूरा अनुभव हमे यही हुआ। मूर्ति के मुख पर सहज विपाद है । दीर्धकाल तक मनुष्य की दुर्बलता, उसकी नीचता, निस्सार जीवन के प्रति उसका