Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन संदेश
मूर्ति वहाँ प्रकट हो जायेगी । राजपुरुष ने अपना रत्न जडित धनुप हाथ में लिया और उस पर तीन हाथ लम्बा सोने का बाण चढाया । वाण सनसनाता हुआ हवा मे चला । विंध्यागिरि का शिखर आया, पत्थरो की पपडियाँ खिरी (गिरी) और मंत्री, करुणा, प्रसन्नता तथा विरक्ति का प्रकाश प्रकाशित करता हुआ गोमटेश्वर का मस्तक प्रकट हुआ । राजपुरुष यह देख कर आनन्दातिरेक से विह्वल हो गया । उसकी माता की ओर से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी । तत्काल अनेक मूर्तिकार वहाँ आ पहुँचे । प्रत्येक मूर्तिकार के हाथ मे हीरे की एक-एक छेनी थी । वे बाहुबलि के दर्शन करते और आसपास के पत्थरो का हटाते जाते । कन्धे प्रकट हुए, छाती निकली । भुजा और भुजा के ऊपर लिपटी माधवी लता स्पष्ट दिखाई देने लगी। वे पैरो तक आए । नीचे पुरानी दीमक मिट्टी का ढेर था । इसमे से विकराल सर्प बाहर निकलते थे, लेकिन ये सब अहिसक । मूर्तिकार ठीक पैरो पर आए, पैरो के नाखून चमकने लगे । पैरो के नीचे एक खिला हुआ कमल दिखाई दिया । उसे देख कर सेना सहिन सब के मुख कमल खिल गये । भक्त माता का हृदय कमल भी खिल गया । अब उसे अधिक जीने की लालसा न रही। उसने कृतार्थ होकर अपने जीवन रूपी कमल को वही प्रभु के चरणो मे समर्पित कर दिया ।
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आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी । सभी जय-जयकार करने लगे । वह मूर्ति कितनी सुन्दर थी ? दिगम्बर और पवित्र, मोहक और ज्वलन्त, तारक और उद्धारक । जितने आदमिया ने उस मूर्ति को देखा, मानो उन सभी का पुर्नजन्म हो गया । वे अव ससार को विचित्र दृष्टि से देखने लगे, जैसे उनके हृदय प्रदेश से राग-द्वेष लोप हो गया हो । उनके हृदय मे नवीन सात्विक आनन्द का अनुभव होने लगा और वे सभी 'जय गोमटेश्वर" "जयगोमटेश्वर " की ध्वनि करने लगे ।
४. गोमटेश्वर के दर्शन
जिस समय हम बाहुबलि के दर्शन करने गये, उस समय हमने शास्त्र की मर्यादा के अनुसार बार-बार आपाद - मस्तक दर्शन किये। उस मूर्ति के नीचे दोनो ओर दो शिलालेख है । एक ओर प्राचीन नागरी लिपि मे और दूसरी और प्राचीन कन्नड लिपि मे, लेकिन दोनो मे एक ही मराठी वाक्य लिखा है'चामुण्डराये कविले ' ' चामुण्डराय ने बनवाया । मराठी भाषा के इतिहास लेखक कहते है कि मराठी भाषा मे लिखी पुस्तको और शिलालेखो मे यह वाक्य