Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रतिवीर्य बाहुबलि
आगे चल कर हम विध्यागिरि की तलहटी मे आ गए। गोमटेश्वर की विशाल मूर्ति के सम्बन्ध मे पहले से ही सुनने के कारण मै तो हासन से ही उसकी तलाश मे था । कोई चौदह मील की यात्रा शेप थी कि चन्द्रगिरि और विध्यागिरि दिखाई देने लगे । साथ ही शिखर (चोटी) पर एक अस्पष्ट विन्दु अथवा झण्डेर के सत स्तभ की चोटी जैसा भी एक पत्थर दिखाई देने लगा । मुझे विश्वास हो गया कि यही बाहुबलि हे और मैने शीघ्र दोनो हाथ जोडकर प्रणाम किया ।
कारकल मे भी बाहुबलि की मूर्ति है वह भी 47 फीट से कम ऊची नही है । उनके श्रास-पास बाँध - काम न होने से वह बहुत दूर-दूर से दिखाई देती है | श्रवणबेलगोल के आस-पास बहुत दर्शनीय स्थान है । यदि हमारे पास समय होता तो हम सबको देखे बिना न रहते, लेकिन सूरज ढल रहा था । फिर यह सोचकर कि यदि सब देखने का लोभ रहेगा तो कुछ ध्यान से नही देख पायेगे । हमने निश्चय किया कि केवल गोमटेश्वर देखकर ही लौट आयेगे । हम छोटी-छोटी छ सौ सीढियाँ चढ कर चार सौ सत्तर फीट ऊ ची पहाडी पर पहुँचे । जीने के द्वार पर ही एक सुन्दर दरवाजा है। इसका नाम गुल्लकायजी बागलु है । कन्नड भाषा मे गुल्लकायजी का अर्थ है - वैगन, बहन अथवा माता और बागलु का अर्थ है - दरवाजा ।
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अब इस गरीब वैगन- मैया का भी थोडा वत्तान्त सुन लीजिए । जिस समय चामुण्डराय ने गोमटेश्वर की इस मूर्ति का निर्माण कराया और सन् 1208 मे तीसरी मार्च को रविवार के दिन इस मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने का निश्चय किया, उस समय गुल्लकायजी नाम की एक बुढिया भी मूर्ति के अभिषेक के लिए एक फल के छिलके मे थोडा सा गाय का दूध ले आई और लोगो से अनुनय-विनय के साथ कहने लगी कि मुझे भी अभिषेक के दूध ले जाने दो। बेचारी बुढिया की ओर कौन ध्यान देता ? वह रोज सवेरे गाय का ताजा दूध लाती और शाम को गोधूलि समयं निराश होकर लोट जाती । महीने पर महीने इसी प्रकार बीत गये और अभिषेक का दिन आ गया । अभिषेक के लिए बास और लकडी का ऊँचा मचान बनाया गया । चामुण्डराय राजा का प्रधान सेनापति लोग। की श्रद्धा का पात्र और स्वय भक्ति की मूर्ति, उसके होते हुए दूध की कमी कैसे रह सकती थी । लेकिन दूध के घडे पर घडे उँडेले जाने पर भी दूध और पचामृत मूर्ति की कमर तक न पहुँच सका । लोग घबराए । कुछ न कुछ भूल अवश्य हुई है । दैव का प्रकोप है । अन्त मे बुद्धिमान लोगो को भूल मालूम हो गई । बैगन मैया को दूध लेकर आने की प्रज्ञा दी गई और उसके पास के फल के छिलके का दूध बाहुबलि के मस्तक