Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन सदेश दृश्य देखने को मिलने वाला था । मद्रास की 'जलचरी' (एक्वेरियम) है सही, किन्तु वह है छोटी। और, काच-कुण्ड के कगार से विजली के प्रकाश मे देखाने की सुविधा होते हुए भी उमे कृत्रिम ही कहना चाहिए।
सध्या की शान्ति का समय था। हम सीधे मन्दिर के भीतर पहुँचे । वहाँ एक भाई और एक वहन वीचोवीच वैठकर कुछ पाठ कर रहे थे । भाई को पढने मे कही कठिनाई हुई, तो वहन तुरन्त उसकी सहायता के लिए दौडकर उसकी कठिनाई दूर कर देती थी। हमारे देश मे ऐसा दृश्य स्वागत के योग्य है।
अहिंसा का साक्षात्कार करने वाले तपस्वी महावीर का कुछ क्षण के लिए ध्यान करके मैं बाहर निकला और गुधा हुआ आटा लेकर मनोविनोद के लिए मछलिय को चुगाने के हेतु द्वीप की सीढियों के पास गया । हिन्दूमात्र को यह कार्य पुण्यप्रद मालूम होता है । मैंने इसमे पुण्य तो कही नही पाया, परन्तु विनोद खूब पाया। मछलियो का आकार कलापूर्ण ही है । खासकर जब वे झुड मे इकट्ठी होनी है और क्रीडा करती है अथवा खाने के लिए छीना-झपटी करती है तव । मोडो, ऐंठनो का नृत्य एक जीवित काव्य वन जाता है । मैने आँखे फाडकर सांपा को खोजा और निराश होकर इस मत्स्य-नृत्य से ही सतोष माना ।
यह जल-मन्दिर महावीर का निर्वाण-स्थान नही है, वह तो गाँवमन्दिर के नाम से पहचाने जाने वाले स्थल-मन्दिर मे है। जल-मन्दिर के स्थान पर महावीर की देह का अग्नि-सस्कार किया गया था। जैनो को बडी भारी सस्या और अतिशयोक्ति के बिना कभी सनोप नही होता । उन्होने एक कहानी गढ डाली है। अग्नि सस्कार के वक्त यहाँ तालाव नही था। परन्तु उस समय जो अरबो स्त्री-पुरुष आखिरी दर्शन के लिए यहाँ एकत्र हुए थे, उन्ह ने अपने माथे मे लगाने के लिए एक-एक चुटकी मिट्टी ली । इमसे अग्नि-सस्कार के स्थान के चारं ओर गहरा गड्ढा हो गया और उसमे पानी भर जाने से इस तालाब का निर्माण हुआ ।
कलकत्ता के कला-रसिक श्री वहादुरसिह मिंधी की धर्मशाला मे थोडा-सा आराम किया। प्रकाश और अन्धकार के बीच होने वाले गजग्राह के समय उस तरफ मे हमने जल-मन्दिर का अन्तिम दर्शन किया। मै उसके