Book Title: Mahavira ka Jivan Sandesh
Author(s): Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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महावीर का जीवन सदेश वेल' के समान दिखाई देते है । आसपास सभी जगह धान की खेती और बीच मे सफेद मन्दिर । रास्ता गोल चक्कर काटकर हमे मन्दिरो की ओर ले जाता है।
ये पाँच मन्दिर हैं। इनमें एक ही मन्दिर प्राचीन माना जाता है। ये मन्दिर जैनियो के हैं। अत' उन्होने प्राचीनता को कही भी टिकने नहीं दिया है। काफी रुपये खर्च करके प्राचीनता का नाश करना ही मानो इनका खास शौक है। पालीताणा की भी यही हालत हो गयी है। सिर्फ देलवाडे में ही उतनी मरम्मत होती है जितनी पुरानी कारीगिरी को शोभा दे सके ।
मुख्य मन्दिर एक सुन्दर तालाब मे है। तालाब मे कमलो की एक घटा लिपटी हुई है। पानी में मछलियाँ और जलसर्प अंगडाई लेते हुए इधरउधर घूमते दिखाई देते है। हम जव वहाँ गये, तालाब का पानी कुछ सूख गया था । अत कमलो की गरदन खुली पड़ी थी और बेचारे पत्ते मानो सूखे पापड जैसे हो गये थे।
अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर की तरह यहाँ पर भी मन्दिर मे जाने के लिए एक पुल है । मन्दिरो का आकार नाटा पर प्रमाणशुद्ध है। गर्भगृह के आसपास चारो ओर लम्ब चौरस गुम्बज है। मन्दिर की यही विशेषता है। कलाकोविद लोग ऐसे गुम्बजो के आकार की काफी स्तुति करते है । आसपास के दूसरे मन्दिरो के शिखर ऊँचे है। शिखरो मे कोई खास कला दिखाई नही देती। फिर भी दृष्टि पर उनका असर अच्छा पडता है।
इन मन्दिरो में जो मूर्तियाँ है वे असाधारण सुन्दर हैं। ध्यान के लिए ऐसी ही मूर्तियाँ होनी चाहिए । इन मूर्तियो की सुन्दरता को देख कर मैं उन्हे मोहक कहने जा रहा था। पर तुरन्त याद आया कि इनका ध्यान तो मोह को दूर करने के लिए ही किया जाता है। चित्त को एकाग्र करने की शक्ति इन मूर्तियो मे अवश्य है।
इन मन्दिरो मे पूजा वहाँ के ब्राह्मण ही करते है। जैन मन्दिगे में पूजा ब्राह्मण के हाथो हो । यह कुछ अजीव-सा लगा। फिर भी 'हस्तिना ताड्यमानोऽपि न गच्छेज्जिनमन्दिरम्' कहने वाले ब्राह्मण-लोमलेटी क्यो न हो-इतने उदार हो सके इस बात का सतोप जरुर हुआ। ___आज पावापुरी एक छोटा-मा देहात है । अहिंमा धर्म का प्रचार करने भाले महावीर जव यहाँ रहते थे तव उमका स्वरूप कैसा रहा होगा?