Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir બમિમલ્લુ ( १२ ) अभिमन्यु इनका 'अभिमन्यु' नाम होनेका कारण ( आदि. २२० । ६७) । अर्जुनसे इनका समस्त अस्त्र-विद्याओंका अध्ययन ( आदि० २२० । ७२ )। मातासहित अभिमन्युका मामा श्रीकृष्णके साथ वनसे द्वारकाको जाना (वन० २२। ४७)। प्रद्युम्नद्वारा अभिमन्युकी अस्त्रशिक्षा (वन. १८३ । २८)। अभिमन्युद्वारा द्रौपदीकुमारोंका गदा और दाल-तलवारके दाँव-पेंच सिखाना (वन० १८३ । २९)।मातासहित अभिमन्युका उपप्लव्य नगरमें आगमन (विराट. ७२ । २२)। उत्तराके साथ अभिमन्युका विवाह (विराट० ७२ । ३५)। संजयद्वारा इनके पराक्रम और इन्द्रियसंयमका वर्णन (उद्योग. ५०।१३) । प्रथम दिनके युद्धमें कोसलराज बृहलके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म०४५। १४-१७)। भीष्मके साथ भयंकर संग्राम करके उनके ध्वजको काट देना (भीष्म०४७।९-२५)। भीष्मके साथ जूझते हुए श्वेतकी सहायतामें इनका आना (भीष्म० ४८ । १०१)। धृष्टद्युम्नद्वारा निर्मित क्रौञ्चव्यूहमें स्थान-ग्रहण ( भीष्म० ५० । ५.)। भीष्मपर चढ़ाई करते हुए अर्जुनकी सहायता करना ( भीष्म ५२ । ३०; ६० । २३-२५ ) । दूसरे दिनके संग्राममें लक्ष्मणके साथ युद्ध ( भीष्म ५५ । ८-१३)। अर्जुनद्वारा निर्मित अर्धचन्द्रव्यूहमें स्थान-ग्रहण (भीष्म० ५६ । १६)। गान्धारोके साथ युद्ध करना (भीष्म० ५८ । ७) । इनका अद्भुत पराक्रम (भीष्म०६।। -१)। शल्यपर आक्रमण तथा हाथीसहित मगधराज (जयत्सेन) का वध (भीष्म०६२ । १३-१८) तथा (कर्ण०७३।२४-२५)। भीमसेनकी सहायता (भीष्म० ६३, ६५, ६९ तथा ९४ अध्याय) । लक्ष्मणके साथ युद्ध और उसे पराजित करना ( भीष्म० ७३ । ३१-३७) । कैकयराजकुमारोंका। अभिमन्युको आगे करके शत्रुसेनापर आक्रमण (भीष्म० ७७ । ५८-६१)। विकर्णपर विजय (भीष्म० ७८ । २१ )। विकर्णपर विजय (भीष्म० ७९ । ३०-३५)। इनके द्वारा चित्रसेन, विकर्ण और दुर्मर्षणकी पराजय (भीष्म ८४ । ४०-४२)। धृष्टद्युम्नके शृङ्गाटकव्यूहमें स्थान ग्रहण ( भीष्म० ८७ । २१)। भगदत्तके साथ युद्ध ( भीष्म० ९५ । ४.)। अम्बष्ठकी पराजय ( भीष्म० ९६ । ३९-४०)। अलम्बुषके साथ घोर युद्ध (भीष्म १०० अध्यायमें)। इनके द्वारा अलम्भुषकी पराजय ( भीष्म० १०१। २८-२९)। चित्रसेनकी पराजय (भीष्म० १०४।२९)। सुदक्षिणके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११० । १५)। सुदक्षिणके साथ द्वन्द्वयुद्ध (१११ । १५-२१)। दुर्योधनके साथ युद्ध ( भीष्म० ११६ । १-८)। बृहलके साथ युद्ध ( भीष्म० ११६ । ३०-३६)। भीष्मपर धावा (भीष्म ११८ । ४०) । अर्जुनकी रक्षाके लिये युद्ध करना (भीष्म० ११९।२१)। धृतराष्ट्र द्वारा इनकी वीरताका वर्णन (द्रोण. १०। ४७-५२)। पौरवके साथ युद्ध करके उनकी चुटिया पकड़कर पटकना ( द्रोण. १४ । ५०-६० )। जयद्रथ के साथ युद्ध ( द्रोण० १४ । ६४-७४ ) । शल्यके साथ युद्ध (द्रोण० १४१ ७८-८२)। इनके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । ३३)। इनके वधका संक्षिप्त वर्णन (द्रोण० ३३ । १९-२८)। चक्रव्यूहसे बाहर निकलनेकी असमर्थता प्रकट करना (द्रोण० ३५ । १८-१९) । व्यूहभेदनकी प्रतिज्ञा (द्रोण. ३५ । २४-२८)। चक्रव्यूहमें प्रवेश और कौरवोंकी चतुरङ्गिणी सेनाका संहार (द्रोण० ३६ । १५-४६)। इनके द्वारा अश्मकपुत्रका वध (द्रोण. ३७ । २२-२३ ) । राजा शल्यको मूञ्छित करना (द्रोण०३७ । ३४)।इनके द्वारा शल्यके भाईका वध (द्रोण० ३८ । ५-७) । इनके भयसे कौरव-सेनाका पलायन (द्रोण. ३८ । २३-२४)। द्रोणाचार्यद्वारा अभिमन्युके पराक्रमकी प्रशंसा (द्रोण० ३९ अध्याय)। दुःशासनको फटकारते हुए उसे मूर्च्छित कर देना (द्रोण० ४० । २-१४)। इनके द्वारा कर्णकी पराजय (द्रोण० १० । ३५-३६) । अभिमन्युद्वारा कर्णके भाईका वध, कौरव-सेनाका संहार तथा भगाया जाना (द्रोण. ११ अध्याय)। वृषसेनकी पराजय (द्रोण. ४४ । ५)। वसातीयका वध (द्रोण० ४४ । १०)। सत्यश्रवाका वध (द्रोण०४५ । ३) । शल्यपुत्र रुक्मरथका वध (द्रोण० ४५ । १३)। इनके प्रहारसे पीड़ित दुर्योधनका पलायन (द्रोण० ४५ । ३०) । इनके द्वारा दुर्योधन कुमार लक्ष्मणका वध (द्रोण०४६ । १२-१७)। इनके द्वारा क्राथपुत्रका वध (द्रोण. ४६ । २५-२७)। अभिमन्युका घोर युद्ध, उनके द्वारा वृन्दारकका वध तथा अश्वत्थामा, कर्ण और बृहद्बल आदिके साथ युद्ध (द्रोण. ४७ । १-२१)। इनके द्वारा कोसलनरेश बृहदलका वध (द्रोण० ४७ । २२)। इनका कर्णके साथ युद्ध और उसके छः मन्त्रियोंका वध (द्रोण. १८।१-६) । इनके द्वारा मगधराजके पुत्र अश्वकेतुका बध (द्रोण. ४८।७)। इनके द्वारा मार्तिकायतकनरेश भोजका वध (द्रोण०४८ । ८)। इनके द्वारा शल्यकी पराजय (द्रोण० ४८ । १४-१५)। इनके द्वारा शत्रुञ्जय, चन्द्रकेतु, मेघवेग, सुवर्चा और सूर्यभासका वध (द्रोण. १८ । १५-१६) अभिमन्युका शकुनिको घायल करना For Private And Personal Use Only

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