Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 01
Author(s): Kshamabhadrasuri, Ratnajyotvijay
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 203
________________ 196 कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचिते मध्यमवृत्त्यवचूरिभ्यामलते धवाद्योगादिति निवृत्तम् / यवादिभ्यो यथासङ्ग्यं दोषादौ गम्यमाने स्त्रियां ङीः स्यात्, तद्योगे आन्, चान्तः / दुष्टो यवो यवानी। लिपौ यवनानी / उरुत्वे अरण्यानी। महत्त्वे हिमानी। लिपीति किम् ? यावनी वृत्तिः // 65 // ___ अ० दुष्टो यवो यवानी इति व्युत्पत्तिकरणायैव अवयवार्थ एवंविधोऽसन्नेव परिकल्प्यते / यवजातेहि जात्यन्तरं रालकाभिधानं यवानी इत्युच्यते / यवानां दोषकारि सहचरितं रालक इति नाम्ना द्रव्यान्तरमिति भावार्थः / यवनानां देशविशेषजनानां लिपिरियं यवनानीं / अत्र-उक्तार्थत्वात् (तद्विषये ङीविधानादित्यर्थः) 'तस्येदम्' (6 / 3 / 160) इत्यनेनाण् न भवति / महद्धिमं हिमानी / यवनानामियं 'तस्येदम्' अण् / यत्र तु यवनस्य भार्या यवनी तत्र 'धवाद्योगा०' (2 / 459) इति डीः / यवारण्यहिमशब्दानां दोषाद्यभावे स्त्रीत्वमेव नास्ति, इति तेषां प्रत्यदाहरणानि न दर्शितानि / यत्र तु संज्ञा विवक्ष्यते तत्र यवा / यवना / अरण्या / हिमा / इति नाम्ना काचित् स्त्री // 65 // आर्यक्षत्रियाद्वा // 2 // 4 // 66 // . आभ्यां स्त्रियां ङीर्वा स्यात् / ङीयोगे आन् चान्तः / आर्याणी आर्या / क्षत्रियाणी क्षत्रिया / अधवयोगेऽयं विधिः [इदं सूत्रं प्रवर्त्तते], धवयोगे तु पूर्वेण 'धवाद्योगा०' (2 / 4 / 59) नित्यं डीरेव / आर्थी क्षत्रियी // 66 // ___अ० आर्यः, क्षत्रियः, पुमान्, (स्त्री)चेत् आर्याणी 2, क्षत्रियाणी 2 / आर्यस्य भार्या आर्या / क्षत्रियस्य भार्या क्षत्रियी / 'धवाद्योग०' (2 / 4 / 59) इति नित्यं ङीरेव // 66 // यत्रो डायन् च वा // 2 // 4 // 67 // यञ्प्रत्ययान्तात् स्त्रियां डीःस्यात्, ङीयोगे च डायन् अन्तो वां स्यात् / गार्गी गाायणी // 67 // अ० गर्गस्यापत्यं वृद्धं स्त्री गार्गी गाायणी / 'गर्गादेर्यञ्' (6 / 1 / 42) इति सूत्रेण यञ् / उभयत्रापि ङीः / 'अवर्णेवर्णस्य' (7 / 4 / 68) [अ लुक्] / एकत्र डायन् / [यत्र] 'व्यञ्जनात्तद्धितस्य' (2 / 4 / 88) इति तद्धितयलोपः। तत्र गार्ग इति रूपं यलोपे सति / गाायणी-अत्र तु यलोपो न प्राप्नोति / डायना ङीर्व्यवहितः (डित्करणमासुरायणीत्यत्र प्रयोजनार्थम्) // 67 // लोहितादिशकलान्तात् // 2 / 4 / 68 // लोहितादिभ्यः शकलान्तेभ्यो यान्तेभ्यः स्त्रियां ङीः स्याद्, ङीयोगे डायन् चान्तः / लौहित्यायनी कात्यायनी // 6 // अ० 'गर्गादेर्यञ्' (6 / 1 / 42) इति तद्धितसूत्रे गर्गादिगणमध्ये लोहित संशित वक्र बभ्रु बभ्लु मण्डु मङ्गु मधु शस्थु शङ्कु लतु लिगु गूहलु जिगीषु मनु तन्तु मनुतन्तु मनायी सूनु सुव कच्छक ऋक्ष रुक्ष रूक्ष तरुक्ष तलुक्ष तण्डिन् वतण्ड कपि कत शकल इति लोहितादिशकलान्तशब्दाः 31 ज्ञातव्याः / लोहितस्यापत्यं वृद्धं स्त्री लौहित्यायनी / कपतस्यापत्यं वृद्धं स्त्री कात्यायनी / 'गर्गादेर्यञ्' // 68 // पावटाद्वा // 2 // 4 // 69 // षकारान्तानाम्नोऽवटशब्दाच्च यजन्तात् स्त्रियां ङीर्वा स्याद्, ङीयोगे डायन् चान्तः / पौतिमाष्यायणी पौतिमाष्या / आवट्यायनी आवट्या // 19 // अ० 'षावटाद्वा' अत्र सूत्रे ङीडायनोरुभयोरप्यनुवर्तनात् प्राधान्यात् ङीप्रत्ययेनैव सह वाशब्दस्य सम्बन्धो

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