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महावीर प्रभु के महान् भक्त राजा श्रेणिक की निकाचित कर्म के योग से नरकगमन की आपत्ति दूर न हो सकी, परन्तु नरक की ओर दौड़ लगाते हुए नास्तिक राजा प्रदेशीको अरिहंत प्रभु भजने को मिले तो प्रभु के प्रभाव से नरक के कर्म टे! और नरक-गमन तो नहीं हुआ । बल्कि उलटे देवगति में जाना हुआ। आरेहंत देव के अचिन्त्य प्रभाव का कथन महर्षिगण करते आये हैं, और भव्यात्मा उसका अनुभव करते आये हैं !
अरिहंत के प्रभाव पर श्रद्धा (भरोसा) है ? |
प्र० परन्तु उन अरिहंत के प्रभाव से तो परभव की आपत्ति मिटती है न? अरिहंत के प्रभाव से यहाँ की आपत्ति मिटती है क्या ?
उ० अरे, यहाँ की भी मिटे, परन्तु अरिहंत के प्रभाव में श्रद्धा चाहिए न ? बताओ, तुम्हें खुद अरिहंत देव पर तो फिर भी श्रद्धा होगी लेकिन क्या उनके प्रभाव पर, उनकी अचिन्त्य शक्ति पर श्रद्धा है सही ? अरे, अरिहंत पर भी क्या (कौनसी) श्रद्धा है सो भी विचारणीय है ?
प्र० क्यों भला ? उन्हें भजने से और उनके द्वारा उपदेश दिये गये (दिखाये गये) मोक्ष-मार्ग की आराधना करने से मोक्ष मिलता है, सद्गति मिलती है, यह श्रद्धा है ही न ?
उ० इसमें श्रद्धा क्या रही है सो जाँचिये । अब भी अपने भजने के तथा मार्गाराधन के पुरूषार्थ के सामर्थ्य पर श्रद्धा है कि यह सद्गति तथा मोक्ष अवश्य देता है, परन्तु इसमें अरिहंत का सामर्थ्य कुछ काम करता है ऐसा मन में पक्का विश्वास है सही ! 'मेरे पुरूषार्थ ने भला किया या करता है' ऐसा लगता होगा, परन्तु सचमुच तो अरिहंत देव ही भला कर रहे है ऐसा लगता है सही ? ध्यान का स्मरण का पुरूषार्थ तो है सो ही है परन्तु स्वयं अरिहंत देव में ऐसा कोई जादू है, चमत्कार है, प्रभाव है कि उन्हे ध्यान - स्मरण में लाएँ तो अद्भूत कल्याण होता है, अतः कहिये कि फल मिलने में उनका प्रभाव मुख्य काम करता है। अरिहंत में ऐसा अद्भुत प्रभाव है, और वह प्रभाव क्या है उसे हम नहीं जान सकते, अतः उनका प्रभाव अचिंत्य है - यह श्रद्धा है सही?
अरिहंत वीतराग हैं, सर्व श्रेष्ठ गुण-सम्पन्न हैं, सच्चा मोक्षमार्ग सिखा गये हैं अतः उन पर प्रीति - आदर हो यह अलग बात है, पर उन के प्रति यह श्रद्धा कि 'ये ही तारणहार, ये ही मोक्षदाता, स्वर्गदाता तथा सर्वसुखदाता है' यह अलग बात है । श्रद्धा में तो प्रीति के उपरान्त उनके प्रभाव, उनकी अचिन्त्य शक्ति पर
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