________________
कौनसी विशेषता, कौनसी महत्ता हुई ? महत्ता-विशेषता-उच्चता लाना चाहते हो तो यह लाओ-- विविध तप, छोटे-बड़े संयम-नियम, आंशिक रुप में ही सही उपशम-उदासीन भाव, अहिंसा-सत्य-नीति-ब्रह्मचर्य आदि ।
मुनि सूर्य के दृष्टांत रुप :
ऐसे महामुनि को देखकर कुमार को अपूर्व आनंद हुआ । मन को लगा वाह ! उपशम की मूर्ति के समान इन महर्षि के प्रभाव से चारों ओर का वातावरण शांत-उपशांत बन जाय ऐसा नहीं है ?
“एक सूर्य स्वयं तेजस्वी तेजोमूर्ति है, तो वह जगत के वातावरण को प्रकाशमय बना देता है न ? धन्य जीवन ! धन्य अवतार ! प्रशांत बना हुआ सागर कितना भव्य लगता है !' कुमार देखता है कि ऐसे महर्षि के पास दिव्य पुरुष और सिंह बैठा हुआ है। मानो ऐसा प्रतित होता है कि धर्म, अर्थ और काम ही इस स्वरुप में यहाँ विराजमान हुए हैं | मुनि जैसे साक्षात धर्म है, और दिव्य पुरुष तथा सिंह अर्थ और काम हैं । अथवा मानों तीनों लोकों के सार का उद्धार कर उसे मानों महर्षि, देव और सिंह के रुप में यहाँ बैठा दिया है, ऐसा मालूम होता है। अतः मैंने पहले जो सुना था कि 'और आगे बढ़ो, तुम्हें अदृष्टपूर्व (पहले न देखा हो ऐसा) देखना है, सो सचमुच पहले कभी नहीं देखा था ऐसा यह अपूर्व देखने मिला। . कुमार आगे विचार करता है कि शास्त्रों में और लोक में सुना जाता है कि 'महर्षिगण और देव दिव्य ज्ञानधारी होते हैं ', तो मैं घोडे द्वारा हुए मेरे अपहरण के विषय में महर्षि से पूछ लूं ऐसे महात्मा मिल गये हैं तो क्यों बाकी रखा जाय ?
स्वागत-उपचार
परन्तु निकट जाकर पूछे उससे पहले ही महर्षि स्वयं ही उससे कहते हैं - 'अरे कुमार कुवलयचंद्र ! तुम्हारा स्वागत है, आओ !'
महर्षि के मुखारविंद से झरती हुई ऐसी कोमल वाणी सुनकर कुमार को बडी प्रसन्नता हुई । वह रोमांच के साथ विनय एवं प्रेम पूर्वक महर्षि के चरणकमलों में प्रणाम करता है। मुनि उसे समस्त भव-भय को दूर हटानेवाली और मोक्षसुख देनेवाली ‘धर्मलाभ' की आशीष देते हैं। दिव्य पुरुष कुमार के स्वागतार्थ अपनी हथेली आगे करता है, तो कुमार भी उसे अपनी हथेली से ग्रहण कर के प्रणाम करता है।
१२८
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org