Book Title: Kuvalayamala Part 1
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 230
________________ ले लिया अपने सिर पर । अपनी पत्नी ही मान करं सब कुछ उस पर बैठा दिया। अब वह काबू में रह सकता है भला ? सोचता है 'तो मुझे अब क्या करना चाहिए।' इसी समय दैवात नाटक के अभिनेता ने गीत गाया कि 'जो व्यक्ति जिसे प्रिय हो वह यदि दूसरे के साथ रमण करे और यह बात यदि उसे मालूम हो जाय तो वह उसकी जान लेता है ।' बस इस वचन ने इसके प्रस्तुत विचार में आग में घी डालने का काम किया । गुस्से से वह एकदम भडक उठा । अतः सोचता है 'बस, तो मैं जाता हूँ घर, लेकिन छोटे रास्ते से चलूँ जिससे इन दोनों के पहले पहुँच जाऊँ और ये पहुँचे तब खबर ले लूँ' ऐसा तय कर तुरन्त वहाँ से भागा घर की ओर । नाटक देखना कहाँ रह गया ? देखने में दिलचस्पी तो थी न ? लेकिन यह कहिये कि दूसरी दिलचस्पी बलवान उत्पन्न हुई अतः वह दिलचस्पी दब गयी । बात यही है कि - बुरी भावनाओं का दमन करना हो तो उनके सामने कोई अच्छी रूचि (१लचस्पी ) का कार्य उपस्थित करो । क्रोध को दबाने का उपाय : उदाहरणतया - क्रोध की मनोवृत्ति बार बार सता रही हो तो (१) उसके विरूद्ध नवकार मंत्र के स्मरण में रुचि उत्पन्न की जाय। मन को ऐसे समझाया जाय कि 'क्रोध करने से शायद कोई तात्कालिक फायदा दिखाई दे तो भी वह तुच्छ है जबकि हृदयपूर्वक याद किये गये नवकार का लाभ अपरंपार है । (२) आगे और विचार करें कि कहाँ यहाँ के उठाईगिरे को दिमाग में स्थान देना ? और कहाँ इन श्रेष्ठ पंच परमेष्ठि को मन में बिराजमान करना ? कहाँ यह तमतमाना और कहाँ वह परमेष्ठि- नमस्कार ? अरे ! मोहमूढों को दिमाग में घुसाना, और प्रेम या रोष करना तो दुनिया में सर्वत्र मिलता है, और मिला है, अनन्तानन्त काल तक यही किया है। परन्तु इन परमेष्ठि को मस्तिष्क में बिराजमान करना और उन्हें नमस्कार करना कहाँ मिले? तो फिर लाओ यही करें।" इस तरह मन को समझाया जाय, तो उसका रस पैदा हो और वह मौके पर काम कर जाय । गुस्से की भावना भुलाकर मन को इस नवकार - स्मरण तथा परमेष्ठि- स्मरण में पिरो दे। (३) इतना ही नहीं बल्कि अनन्तानंत परमेष्ठि को दृष्टि समक्ष लाकर प्रत्येक के चरणों में स्वयं मानो सिर का स्पर्श कराता हुआ नमस्कार करता हो इस प्रकार की कल्पना कर के पुनः पुनः नवकार याद करके नमस्कार करना जारी रहे। ऐसा हो तो गुस्सा धीमा पड़ जाए । Jain Education International २२२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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