Book Title: Kuvalayamala Part 1
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 242
________________ हैं । फिर भी चंडसोम तो दौडा गाँव के बाहर ! चिता तैयार की ! सुलगायी और ज्योंही उसमें गिरने को होता है उससे पहले ही युवक लोग आकर उसे रोक लेते हैं, पकड़ रखते हैं और तब तक गाँव के प्रौढ़जन भी आ पहुँचते हैं। ___ चंडसोम कहता है - 'हे भट्टो । मुझ पापी को मरने से क्यों रोकते हो ?' तो भी वे तो रोक ही रहे हैं । हम अपनी छोटी सी भूल भी कबूल करने और उसका पश्चात्ताप करने तत्पर नहीं होते, लेकिन यहाँ देख लीजिये कि भूल की स्वीकृति, पश्चात्ताप और अपने आप दंड का स्वीकार इन का लोगों पर कैसा जादुई प्रभाव पड़ता है। पाप-नाश विषयक अज्ञान-कल्पनाएँ : वहाँ एक सभा-सी बन गयी । चंडसोम ने कहा, 'मुझे मरने दीजिये ।' तब लोग कहते हैं - 'नहीं, तू मरे किसलिए ? पाप का प्रायश्चित्त है । इसने कहा, 'तो मुझे प्रायश्चित्त दीजिये ।'लोग उसे बिठाते हैं और अब उसके मन पर से बोझ उतारने के लिए बारी बारी से एक एक व्यक्ति पाप विषयक खंड-खंड लोकशास्त्र बताता है । - ... २१. पाप-नाश के अज्ञान - शास्त्रकथन (१) एक जना कहता है- 'अकामेन कृतं पापम् अकामेनैव शुष्यति' अर्थात् इच्छाइरादे के बिना पाप किया हो तो वह बिना इरादे के ही शुध्द हो जाता है । तूने 'भाई बहन को मार डालू' ऐसा इरादा नहीं किया था अतः तेरी इस इच्छारहितता (बिना इरादे) से ही तेरा पाप शुध्द हो जाता है। __ पाप-नाश की यह कैसी अज्ञान - कल्पना है ? क्योंकि इसमें तो यह बात मानों भुला दी गयी है कि (१) उन निरपराध अनजाने स्त्री-पुरूष को मार डालने का इरादा और प्रयत्न किया यही तो पहला बडा अपराध है । तिस पर (२) अविचारी - उतावली वृत्ति से बर्ताव करने में अनजाने, इरादा न हो तो भी दूसरे को क्षति पहँचती हो तो क्या वह अपराध नहीं ? आदमी रास्ते में तलवार या लाठी घुमाता हुआ चले और इससे अनजाने में कोई झपट में आ जाए तो क्या कोई हर्ज नहीं ? (२) दूसरा कहता है - 'जिघासन्तं जिघांसीयात्' न ते न ब्रह्महा भवेत्' अर्थात् २३४ 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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