Book Title: Kuvalayamala Part 1
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 243
________________ मरने की तैयारीवाले को मारने की बुद्धि (इच्छा) करे तो इसमें ब्रह्महत्या नहीं लगती ! तेरे भाई - बहन के मरने का क्षण ही आ गया होगा इसलिए तेरी मारने की बुद्धि हुई इसमें तेरा क्या दोष ?" यह भी कैसा अज्ञान है । इस तरह से तो कसाई, खूनी आदि कोई गुनाहगार ही नहीं गिना जा सकता । सच बात तो यह है कि मारने की बुद्धि (इच्छा) की, यही बडा गुनाह है। पाप बुद्धि ही रूक जाय तो पाप बन्द होते क्या देर लगती है ? हाँ, यदि कोई कुँए में गिरने की तैयारी कर रहा हो इसलिए उसे धक्का तो नहीं मारा जा सकता । मारने की बुद्धि बुरी है । रस्से को साँप समझ कर वार करे तो साप मारने का ही पाप लगता है । (३) तीसरा फिर कहता है- "कोपेन यत्कृतं पापं कोप एवापराध्यति' अर्थात् क्रोध से पाप किया तो उसमें कसूर क्रोध का है, जीव का क्या कसूर ?” देखिये ये स्वच्छंद शास्त्र । क्रोध कोई आदमी है कि उसका कसूर माना जाय ? यह तो जीव की ही एक वृत्ति है, और ऐसी कुत्सित वृत्ति करनेवाला जीव ही कसूरवार है । लेकिन अज्ञान - मूढ मान्यता को इसका कहाँ विचार करना है । " (४) चौथा और कहता है, - " ब्राह्मणानां निवेद्यात्मा शुद्धयेत" अर्थात ब्राह्मणों से अपना पाप कहू देने से आत्मा शुद्ध होती है ।" यह भी पापियों को अनूकूल आए ऐसा सूत्र है । ब्राह्मणों के आगे कह देने मात्र से यदि निपट जाता है तो जीव पापाचरण में क्यों कोई कमी रखेंगे ? और पापी वृत्ति रूकेगी कैसे ? (५) पाँचवाँ कहता है- “अज्ञानात् यत्कृतं पापं, तत्र दोषो न जायते" अर्थात् 'अज्ञान के कारण जो पाप सेवन हुआ उसमें दोष नहीं लगता । " यह भी कैसी पागल मान्यता है ? अनजानेमें सीढी पर से गिर जाय तो क्या चोट नहीं आती ? अनजाने यदि जहर खाने में आ जाय तो क्या नहीं मरता ? (दुनिया का बडा हिस्सा) अधिकांश दुनिया अज्ञानता से ही पाप करती है, तब उसे यदि दोष नहीं लगता तो संसार में क्यों भटकता रहता है ? अज्ञानी लोग बेचारे चंडसोम को सान्त्वना देनेका प्रयत्न करते है, परन्तु सान्त्वना ऐसे दी जाती है ? पूर्वापर ( आगेपीछे) से विपरीत और कहीं से असम्बद्ध वाक्य उठाकर कहीं भी लगा दे यह संगत नहीं गिना जाता । इसलिए ये बाते सब गले उतरी भी नहीं । ( जँची भी नहीं) और चंडसोम का चित्त भी इसे स्वीकार नहीं करता अतः वहाँ जो बुजर्ग माने जाने वाले बड़े चालाक पंडित थे वे अब कहते हैं - 'देखो भाई चंडसोम ! तुम्हारा पाप बड़ा है, इसलिए तुम अपना घरबार सब ब्राह्मणो को दान कर, मुंडन करा दो और भिक्षा से जीवन-यापन करते हुए, कुछ २३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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