Book Title: Kuvalayamala Part 1
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 235
________________ २०. चंडसोम का पश्चात्ताप अपकृत्य क्यों किया ?: यहाँ चरित्रकार लिखते हैं कि - 'चंडसोम ने वार करते समय (9) परलोक का विचार नहीं किया (२) लोक में अपयश (लोकनिंदा) की परवाह नहीं की (३) पुरूष कौन है यह तक नहीं देखा (४) न्यायनीति की बुद्धि नहीं रखी । और (५) सत्पुरूष के मार्ग की दरकार न रख कर प्रहार कर दिया ।" इस पर से समझने को मिलता है कि ऐसे अपकृत्यों से बचना हो, कभी भी उस में न फँसने की स्थिति बनानी हो तो अपकृत्य से बचने के उपायः ( १ ) परलोक का विचार रखना । (२) लोक निंदा का डर रखना । (३) संयोग की जाँच और स्थिति का खयाल करो । (४) न्याय नीति की बुद्धि जाग्रत रखो । (५) सत्पुरूष का मार्ग दृष्टि समक्ष रखो । दुष्कृत्यों से बचने के लिए और अमूल्य मानव-जीवन को उज्वल बनाने के लिए ये कैसे सुन्दर उपाय है ? जीवनधन और शासनधन का मूल्य समझो | अब हम कीड़े-मकोड़े नहीं हैं, पशु पक्षी नहीं हैं परन्तु मनुष्य हैं। किस विशेषता से ? और किस लिए? इस पर विचार करो तो ज्ञात होगा कि हम खास बुद्धिबल, विवेकबल और विशिष्ठ पुरूषार्थ बल के कारण विशिष्ट मानव-प्राणी है । यह बल बड़े देवता के पास भी नहीं है, वैसे ही ऐसे विशिष्ट शक्ति संपन्न मानव-भव का मुख्य उपयोग खान-पान, मान-सम्मान पा लेना नहीं वरन् आत्मा का ऊर्ध्वकरण करना विशुद्धीकरण करना है । इसके लिए और भी ऐसे सुन्दर जीवन धन के अलावा शासनधन मिला है। दुनिया में देखिये- जिनशासन जैसा दूसरा कौनसा शासन है । शासन के बताये हुए देव - गुरू धर्म की पंक्ति में सारे विश्व में देख लो - दूसरे देव- गुरू धर्म कहाँ है ? देव वीतराग सर्वज्ञ, गुरु निर्गन्थ, और धर्म (9) स्याद्वाद युक्त जीवाजीवादि नौ तत्त्वों के सम्यग्दर्शन- ज्ञानमय तथा (१) अहिंसा - संयम - तप के सम्यक् चारित्र से युक्त अन्यत्र कहाँ देखने मिल सकता है ? तब फिर ऐसे सुन्दर सर्वश्रेष्ठ शासनधन को पाने के बाद हमारे जीवन में उसका कोई उपयोग नहीं ? और खा गया- खो गया, के खेल के समान धनोपार्जन कुटुंब रमण और उदरंभरण के काम में ही जीवन बरबाद करना ? प्राप्त हुए महान् २२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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