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नरक के दुःखों से मिलनेवाला सबक:
अच्छी स्थिति में कौन से विचार आने चाहिए ?
यदि नरक के ये दुःख ध्यान में रहे तो मन को लगेगा कि 'यहाँ जब उसकी तुलना में कोई उल्लेखनीय दुःख ही नहीं है अर्थात यहाँ तो अच्छी हालत हैं - सब ठीक ठाक है तो फिर इस अच्छी स्थिति में ही क्यों न कष्टपूर्वक धर्म-साधना कर लूँ ? आग्रह पूर्वक गुणों का विकास क्यों न कर लूँ ? मन को दबा कर इन्द्रियों के विषयों से क्यों न विराम प्राप्त करूँ ? दिल का दमन कर क्यों न कषायों को दबा दूँ ? अच्छी स्थिति में यदि ऐसा नहीं करूँगा तो जब दुःख की झडी बरसेगी तब क्या कर सकनेवाला हूँ ? तदुपरांत अच्छी हालत के साथ धर्म करने की जो सामग्री यहाँ प्राप्त है वह अन्यत्र कहाँ मिलेगी ?"
नरक के दुःखों को भूल कर हम चिल्लाते हैं कि 'मुझे बहुत दुःख है ।' धर्म करने, गुणों की रक्षा कर विषयों को दूर रखने और कषायों को काबू में करने का महाकल्याणकारी काम उपस्थित होने पर जीव को दुःख का बहाना आगे कर के छटकने की इच्छा होती है, कि 'मेरी तबीयत कहाँ ठीक है ? धंधे की कितनी कठिनाई है मेरे ? परिवार कहाँ अनुकूल है ? पैसे की छूट सुविधा कहाँ है ? मेरा मन कहाँ मजबूत हैं ? धर्म करने जायँ और आगे बढ कर पीछेहट करनी पड़े तो ? मतलब ? दुःख कष्ट आवे तो ?' ये कैसे बहाने है ? नरक के दुःख ध्यान में हैं ?
मूर्ख जीव नहीं जानता कि ये बहाने बना कर वह दानादि धर्म भुलाकर पैसे पैसे! हाय पैसे ! कर के सच्चे झूठे स्याह- सफेद गोरख धंधे आदि के द्वारा परिग्रह और धनतृष्णा के पाप करता है, शब्द, रुप, रस, गंध आदि विषयों की आसक्ति के पाप निरंकुश बन कर करता है ! खाऊँ-खाऊँ ' - यह खान-पान की संज्ञा (आहार संज्ञा) भी किसी प्रकार के व्रत नियम-तप के बिना अबाधित खुली रखता है। उसी तरह बेशुमार गुस्सा, रोब, घमंड, दंभ, माया आदि का सेवन करता ही जाता है
इस सब में (उस) तुझे क्या यह पता भी है कि 'यदि कहीं नरक का आयुष्य बँध गया तो यहाँ के बहानों की अपेक्षा कैसे अनन्त गुने दुःख में धकेल दिया जाएगा ?
नागदत्त सेठ का बाप बकरा बन कर कसाई के छुरे से कट कर मरा । फिर भी उस दुःख में वह कषाय में चढ़ा तो मर कर पहली नरक में गया ? दुःख का बहाना कहाँ चलता है?
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